पारसी नववर्ष ‘नवरोज़’ क्या है ? उसे कब और कैसे मनाते है ?

  • Post author:
  • Reading time:2 mins read

पारसी नववर्ष ‘नवरोज़’ कब और कैसे मनाते है ?

पारसी धर्म के लोगो का सबसे मशहूर त्यौहार ‘नवरोज़’ है ‘नव’ यानि नया और ‘रोज़’ यानि दिन नयादिन, उस दिन रात-दिन दोनों के समय बराबर होते है यानि के प्रकाश और अंधकार दोनों समान, ज़्यादातर यह दिन मार्च माह के 19,20 या 21 वे दिन मे आता है।

ईरानी केलेंडर के हिसाब से देखा जाए तो 21 मार्च का दिन उनके साल का पहला दिन होता है, इसलिए यह इरानियों का नववर्ष है, पारसी प्रजा के लोग मूल रूप से ईरान के थे। इस लिए वह इस ‘नवरोज’ को पारसी नववर्ष के रूप मे मानते है। पारसी धर्म सबसे प्राचीन धर्म मे से एक है, और ये आर्यों के ईरानि शाखा के संत जरथुष्ट्रने स्थापित किया था।

इस दिन पारसी लोग अपने मंदिर मे विशेष प्रार्थना सभा के आयोजन करते है। उनकी प्रार्थना मे पूरे साल मे भगवान ने उनके ऊपर उपकार किए, उनका साथ दिया उनका आभार प्रकट करते है। मंदिर मे पुजा करके अपने परिवार के लोगो को और समुदाय के दूसरे लोगो को भी वह नए साल की शुभकामनाए देते है।

वह अपने घर के आँगन को रंगोली से सजाते है। चन्दन की महक से अपने घर को सुगंधित करते है। यह सब नववर्ष के आगमन के लिए नहीं, बल्कि अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध करने के हेतु करते हे।

नववर्ष के दिन सुबह मे रवो(शिरो) नामकी मिठाई बनाते है, जिसे वह सूजी, दूध और चीनी मिलाकर बनाते है। इसदिन मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के खाने का प्रबंध करते है।

इस तरह पारसी समुदाय के लोग अपनी परंपरा को निभाते हुए, आज भी अपनी संस्कृति को कायम रखने के लिए बड़े ही गर्व के साथ यह त्यौहार मानते है।    

PERSIAN-NEW-YEAR
PERSIAN-NEW-YEAR

भारत देश मे पारसी प्रजा आने का क्या कारण है ?

भारत देश अपनी प्राचीन संस्कृति के कारण अन्य देशो से कई मायनों में खास है। उसमे भी अतिथि का स्वागत करने की भावना की बात की जाए तो भारत देश सबसे श्रेष्ठ माना गया है।

प्राचीन काल से यह चला आ रहा है,देखा जाए तो आर्यों, इंडोआर्यन, शक-कुषाण, हूण, पारसीओ, आरबों, मोघलो, चिनाओ, डच, फिरंगिओ, पोर्तुगीज, वलंदाओ और अंग्रेज़ो जैसी विदेशी प्रजा हमारे इस भारत देश से आकर्षित हुए, और यहा आकर उनमे से कई प्रजा तो भारत देश की आदर-सन्मान की भावना से आकर्षित होकर आए, और कई प्रजा तो भारत देश को लुंटने के लिए आई।

कई प्रजा के लोग तो यहा भारत देश मे आकर, जहा कोई नहीं रहता था उस जगह पर उनका हक जताने लगे थे।

इस तरह एक से ज्यादा कारणो के लिए आनेवाली विदेशी प्रजाओ मे “पारसी प्रजा” उनकी शांतिप्रियता और नीतिरिती के कारण सबसे अलग प्रजा थी। वैसे तो पारसी प्रजा भी भारत देश मे अपना जीवन बसाने के लिए ही आई थी।

लेकिन पारसीओ ने भारत मे रह कर भारत के विकास करने मे महत्वपूर्ण योगदान देकर भारत देश के प्रति अपना ऋण अदा किया। इस लिए पारसी प्रजा को दूसरी प्रजाओ से अलग रूप से देखा गया।

गुजरात मे पारसीओ का आगमन का इतिहास :

परसीओ मूल ईरान देश के रहने वाले थे। ईरान मे पहले के समय मे उनकी जगह (भूखंड) को ‘फारसी’ नाम से जाना जाता था, समय निकलते वह पूरा देश ‘फारस’ और वहा बसने वाली प्रजा ‘पारसी’ के नाम से मशहूर होने लगी। यह पारसीओ और आर्यों मूल आर्य संस्कृति को अपनाने वाली प्रजा थी।

आरबों और मुस्लिम प्रजाने साथ मिल कर पारसी प्रजा के ऊपर ज्यादा अत्याचार किए थे। आरबों के आतंक से मुक्त होने और अपनी जान बचाने के लिए पारसी प्रजा ईरान देश से भाग निकलते है। कई सालो के संघर्ष के बाद उनका भारत देश मे आगमन होता है।

पारसी प्रजाने 19 साल तक दीव बंदर पर अपना जीवन जिया, लेकिन वहा भी फिरंगियों के आतंक के कारण वहा से अपने जहाजो को लेकर गुजरात की तरफ आते है। रास्ते मे उन्हे समुंदर मे तूफान से सामना होता है।

सभी जहाज डूबने ही वाले थे तब पारसीओ ने भगवान से प्रार्थना की और मन्नत मानी की हम यहा से किसी भी जगह पर सुरक्षित पहुच जाएंगे तो वहा पर एक आतश बहेराम की स्थापना करेंगे। सौभाग्य से तूफान रुक गया और वह सभी पारसी प्रजा को लेकर आनेवाला जहाज गुजरात के ‘संजान बंदर’ पर आके रुकता है।

माना जाता है की ई.सा. पूर्व 936 वा साल था। उस समय जहा पर वह उतरे थे वहा ‘जादीराणा’ नाम का राजा राज करता था। पारसीओ के दस्तूर नेर्योसंग धवल, जादीराणा राजा के पास जाकर बिनती करके कहते है, की उनको उनकी प्रजा के साथ वहा पर रहने की अनुमति दे।

जादीराणा राजा दस्तूर नेर्योसंग धवल की बिनती को स्वीकार करते है, और अपनी कुछ शर्ते रखकर उनको अपने राज्यामे रहनेकी अनुमति देते है। पारसी प्रजा के लोगो ने यहा पर 500 साल तक अपना जीवन जिया। सुख शांति से रहने वाले पारसीओ पर फिर से तकलीफ आई।

साल 1467 के समय गुजरात मे अहमदाबाद मे कोई मुस्लिम राजा राज करता था, वह राजा ने जादीराणा राजा के राज्य पर युद्ध किया, इस लिए वहा भी वो सब टिक नहीं पाये और संजाण छोड़कर वह सब लोग दक्षिण गुजरात मे नवसारी, सूरत, अंकलेश्वर, भरूच, आदि जगहो मे जा कर छिप गए।

इस तरह माना जाता है की Nowruz Persian New Year is the Iranian New Year. 

पारसी प्रजा ईसा पूर्व 15वी सदी मे वह सूरत मे आकर बसे थे। उसके बाद अंग्रेज़ो ने मुंबई राज्य अमल मे किया था तभी से वह लोग मुंबई आकर बसने लगे। 

Nice Days

हम भारत देश के निवासी हैं इसलिए हम अपने देश के बारे में जो भी जानकारी जानते हैं, वह सभी जानकारी जैसे की इतिहास, भूगोल, भारत के त्यौहार, आस्था आदि से जुडी जानकारी इस ब्लॉग में हिंदी भाषा में दी गई है।

Leave a Reply