मनुष्य को अपने कर्मों का फल कैसे भोगना पड़ता है?

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जैसा कर्म वैसा फल : 

हम जो भी कर्म करते है उसका फल हमे अवश्य मिलता ही है। आप उस फल से भाग नहीं शकते, भागने की कितनी भी कोशिस करलों पर वह फल आप को भुगतना ही पड़ेगा, इसके बिना कर्म शांत ही नहीं होता।

हम कितने भी अच्छे-बुरे कर्म करले उसका फल हमारे साथ ही रहता है, चाहे वह हमे देर से ही मिले लेकिन मिलता जरूर है।

अगर हम बुरे कर्म को छुपाने के लिए दुनिया की कोर्ट से अच्छे वकील को रोक कर बच जाते है, लेकिन कुदरत की कोर्ट से कैसे बचोगे? वहा पर किसी भी वकील की बहस नहीं चलती और ना ही किसि की सिफारिस चलती है।

मनुष्य को अपने कर्मों का फल कैसे भोगना पड़ता है?
मनुष्य को अपने कर्मों का फल कैसे भोगना पड़ता है?

कुदरत ने बनाए कर्म के नियम :

कुदरत ने जो कर्म के नियम बनाए है उसमे कोई गलती नहीं होती है। कोई भी कर्म करो उस का फल हमे मिलता ही है। कर्म के नियम मे किसी भी वकील या फिर जज की सिफारिस नहीं चलती है।

जब तक हमारे पुण्य कर्म का फल हमारे साथ है तब तक सही है, लेकिन हम जो गलत कर्म या दुष्ट कर्म करते है वह तो वक्त आने पर ही फल देता है। इस लिए कर्म करने से पहले हमे सोचना चाहिए। कर्म हो जाए इस के बाद उसके फल से भागना व्यर्थ है।

हम जो भी कर्म करते है उसका फल पा ने के किए तैयार रहना चाहिए, कई कर्म एसे होते जो हसते-हसते किए हो लेकिन उसका फल रोते-रोते भुगतना पड़ता है।

राजा परीक्षित को कर्म का फल :

राजा परीक्षित एक महा ज्ञानी, विद्वान और संस्कारी राजा थे। लेकिन उन से एक महान पाप हो गया था। क्रोध के आवेश मे आ कर उन्होने एक निरपराधी ऋषि के गले मे मरा साप पहना दिया था।

राजा घर आये शांत होते ही उनको उनके दुष्कृत्य का एहसास हुआ और पछता कर कहने लगे की मुजसे कितना भयंकर पाप कर्म हो गया।

अब वह समय तो वापस नहीं आ सकता, तो राजा परीक्षित को उस कृत्य का फल तो भुगतना ही पड़ेगा। परीक्षित एक बड़े राजा थे उन्होने अपनी सत्ता का कभी भी दुरुपयोग नही किया था।

परीक्षित राजा ने अपनी भूल का स्वीकार किया और खुद को दंड करने के लिए कहा की, मेरा बल, समृद्धि सब कुछ ब्राह्मण ऋषि के क्रोधाग्नि मे जल जाए, जिस से मेरे दिमाग मे किसी को दुख या क्षति पहुचाने का विचार ना आए।   

राजा परीक्षित अपने पापो का फल भुगतने के लिए तैयार थे, उन्होने कभी भगवान से कोई सिफारिस नहीं की, और ना ही अपने राजा हो ने का घमंड किया। उन्होने तो भगवान से अपने पापो का दंड मांगा। जिस के उदाहरण से भविष्य मे कोई राजा क्रोध के आवेश मे या फिर अपने राजाशाही के घमंड मे आ कर एसा दुष्कृत्य नहीं करे।

इस प्रकार राजा परीक्षित अपने कर्म से भागे नहीं और परिणाम भुगत ने के लिए तैयार रहे। वह भागने की कोशिस करते तो भी कर्म अपना फल दिये बिना नहीं छोडता।  

कर्म वैसा फल की कहानी :  

कई साल पहले की बात है, एक शहर मे एक जज रहते थे। वे नागर ब्राह्मन कुल के थे, और वे खुद भी कठोर वेदन्ती और कर्म के कानून के अभ्यासी थे।

एक बार वे जज सुबह मे टहल ने निकले थे। तब उन्होने देखा की एक व्यक्ति भाग रहा था, और उसके पीछे भागते हुए व्यक्ति ने पीछे से एक खंजर उस के शरीर मे मार दिया, और तब तक उस को घाव करता रहा जब तक वह मर नहीं गया।

यह घटना जज साहब ने अपनी आंखो से देखी। खूनी भाग गया था, उस खूनी को जज साहब ने ठीक तरह से देखा था। फिर जज साहब घर गए, लेकिन यह बात उन्होने किसी को नहीं बताई। क्योंकि खून का केश आखिर मे उनके कोर्ट मे ही तो आने वाला था। 

फिर पूलिस की पूछताछ शुरू हुई, छह महीने मे पूलिस की सम्पूर्ण इंकवायरी पूरी हुई। हत्या का मामला दर्ज किया। और आखिर मे यह मामला उस जज के पास ही आया, लेकिन उन्होने देखा की खूनी कोई औ ही था, उन्होने उस दिन जिस खूनी को देखा था वो यह नहीं था।

फिर मुकदमा शुरू हुआ। उस व्यक्ति को ही खूनी साबित करने का ठोस सबूत मिला। जज साहब तो जानते थे की यह व्यक्ति बेकसूर है, लेकिन जज को सबूतों के आधार पर फैसला देना होता है। उसमे न्यायाधीश के अपने खुद के आधार पर उसको बेकसूर नहीं कहा जाता। इस लिए उस निर्मित प्रतिवादी को पूरे सबूतो के साथ खूनी करार किया गया।

लेकिन जज साहब एक वेदन्ती और कुदरत के कर्म के नियम के पक्के अभ्यासी थे। उनको पता था की असली खूनी घूम रहा है और एक निर्दोस को सजा हुई है। इसलिए उन्होने फाँसी की सजा सुनाने से पहले नकली खूनी को अपने चेम्बर मे बुलाया।

जज साहब के पास जाते ही वह नकली प्रतिवादी रो पड़ा और कहने लगा की मै निर्दोष हु, मेने खून नहीं किया है। पूलिस को असली खूनी पकड़ मे नहीं आया तो उन्होने मेरे पुराने गुनाहो के आधार पर मुझे पकड़ लिया और मेरे खिलाफ सबूत खड़े करके मुझे कोर्ट मे खूनी साबित किया गया है।

तब जज साहब ने कहा की यह हकीकत मै जानता हु, तुम बेकसूर हो। मेने खूनी को अपनी आंखो से देखा था, लेकिन मैं इस मामले को कानूनी रूप से नहीं ला सकता, क्योंकि कानून सबूतो पर आधारित होता है। सबूत पूरी तरह से तुम्हारे खिलाफ है, इसलिए मै तुम्हें कानूनी तोर पर खूनी साबित करके फांसी की सजा सुनाने वाला हु।  

लेकिन कुदरत के नियम मे कही कुछ गलत तो नहीं हो रहा है ना, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए मै तुम्हें अकेले मे एक सवाल पूछता हु, इस बात का तुम मुझे बिलकुल सही जवाब देना, मेरा सवाल यह है की क्या तुम ने भूतकाल मे किसिका खून या फिर उतना ही बड़ा कोई अपराध किया है?

झूठे आरोपो मे फसे व्यक्ति ने अपना शिर झूका कर कहा की मैंने भूतकाल मे दो खून किए थे, लेकिन मेने उस समय पूलिसवाले को बहुत सारे पैसे दिये थे इसलिए मे निर्दोस साबित हो कर छुट गया था। लेकिन इस केस मे मै सचमे बेकसूर हु फिर भी सजा मिल रही है।

जज साहब को समझ मे आ गया की भगवान के कर्म के नियम मे कोई चूक नहीं है। पहले दो खून के समय उसके पुण्य कार्य का फल चल रहा होगा, इस लिए उसका क्रियमाण कर्म ने फल देने मे देर लगाई और कर्म संचित हुए। अब जब पुण्य खत्म हुआ होगा तो पहले के दो खून के फल के रूप मे संचित हुए कर्म ने इस बार प्रारब्ध रूप से बेकसूर होने पर भी उसे फांसी की सजा दी।   

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