चेटीचंड परिचय :
भगवान श्री झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप मे “चेटीचंड” का त्यौहार मनाया जाता है। चेटीचंड हर साल चैत्र मास की चंद्र तिथि को मनाया जाता है। इस त्यौहार को भगवान झूलेलाल जयंती से भी जाना जाता है।
यह पूरे विश्व मे हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला त्यौहार है। भारत त्यौहारो का देश है। भारत मे सभी धर्मो को प्रमुखता दी गयी है। विविध धर्मो के विविध त्यौहार मनाए जाते है। तभी तो भारत मे अनेकता मे एकता के दर्शन होते है।
“चेटीचंड” सिंधी धर्म का मुख्य त्यौहार है।
इस दिन सिंधि धर्मो के इष्ट देव भगवान झूलेलाल को याद करने का दिन है। सिंधी समुदाय के ज़्यादातर लोग व्यापारी है। और वो सभी व्यापार करने जल मार्ग से देश-विदेश जाते थे। समुद्र मार्ग मे कई तरह की आपत्ति आती थी, जैसे की तूफान, समुद्रीजिव और लूट भी होती थी।
इसीलिए सभी घर की महिलाए उनके पुरुषो के सकुशल घर आने के लिए भगवान झूलेलालजी,जो जल के देवता है उनसे मन्नत मांगती थी। जब व्यापार करके कुशल लौट आते थे, तब सारी महिलाए एकजुट हो कर भगवान झूलेलाल से ली गई मन्नते पूरी करती थी। और भगवान झुलेलाल का शुक्रिया अदा करती है।
चेटीचंड के इस पर्व के पीछे एक कथा बहुत प्रचलित है।
चेटीचंड के विषय मे कई किवदंतिया प्रचलित है। सिंध प्रदेश मे ठट्ठा नामक एक नगर था। उस नगर मे मीरखशाह नामका राजा राज्य करता था। जोकि वह पापी और अत्याचारी था। वो हिन्दुओ धर्म के लोगो पर अत्याचार करता था।
उस पापी राजा ने सभी लोगो को धर्म परिवर्तन के लिए सात दिन का समय दिया। सभी लोग परेशान हो गए। कुछ लोग भूखे-प्यासे सिंधु नदी के किनारे जा कर वरुण देवता की उपासना करने लगे।
भगवान सभी की भक्ति से प्रसन्न हो कर एक दिव्य पुरुष के रूप मे मछली पर अवतरित होगाए ।
सभी ने अपनी व्यथा सुनाई। भगवान वरुण देव ने सभी भक्तो को सहायता देने का वादा किया, और कहा की “में खुद अपने परम भक्त रत्नराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा”। तुम सब बिना डरे जाओ।
सभी भक्तगण खुश होकर घर वापस गए। विक्रम सवंत 1007, सन 951ई मे सिंध समुदाय के नसरपुर नगर मे रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से प्रभु खुद एक तेजस्वी बालक उदय चंद्र के रूप मे जन्म लिया। राजा मिरखशाह को यह खबर मिली। उस अत्याचारी राजा ने उस बाल स्वरूप भगवान को मारने के लिए अपने सैनिकों को भेजा है।
जब सैनिक मारने गए तो भगवान का तेजस्वी स्वरूप देखकर चकित रह गए, और माफी मांग ने लगे। और अपने प्रभाव से उस दुष्ट राजा को भी अपने शरण मे आने पर मजबूर कर दिया। और धर्म की रक्षा की। तभी से वह सभी के लिया भगवान झूलेलाल बन गए। और सभी लोग मिलजुल कर रहने लगे।
चेटीचंड का पर्व कैसे मनाया जाता है ?
भगवान झूलेलाल को दरिया लाल, लाल साई,ख्वाजा खिज्र जिंदह पीर, उदेरों लाल आदि नाम से भी जाना जाता है। भगवान झूलेलाल की जयंती देश-विदेश मे पूरे उत्साह एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन कई जगहो पर मेले भी लगते है।
भगवान झूलेलाल के इस पावन पर्व पर जल की आराधना की जाती है। कहा जाता है की जो लोग चालीस दिन तक पूरे विधि-विधान से भगवान झूलेलाल की पुजा- अर्चना करते है, उनका कल्याण होता है, और सभी दुख दूर होते है। चेटीचंड के दिन सभी लोग अपने से बड़े बुजुर्गो से आशीर्वाद लेते है और टिकण (मंदिर)के दर्शन करते है।
इस दिन भक्तो द्वारा भगवान झुलेलाल की विशेष शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। पूरे दिन पूजा-अर्चना के बाद मे सभी लोग यात्रा मे शामिल होते है। सभी सिंधी परिवार अपने अपने घरो मे पाँच दीपक जलाते है, और अपने इस पर्व को खुशहाल बनाते है।