कर्म का अर्थ क्या है? karm ka arth kya hai?

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कर्म परिचय :

सीधी-सरल और कम शब्द मे कहे तो कर्म मतलब क्रिया। हम जो भी कार्य करते है वह कर्म कहलाता है।

खाना-पीना, नहाना, चलना, खड़े रहना, नोकरी करना, सोचना-नहीं सोचना, सोना-जागना, देखना-सुनना, बोलना,जीना-मरना, सांस लेना आदि तमाम शारीरिक और मानसिक क्रिया को कर्म कहा जाता है।

कर्म के तीन भाग है। क्रियमान कर्म, संचित कर्म और प्रारब्ध कर्म।

क्रियमान कर्म:

मनुष्य सुबह जगता है तब से लेकर रात को सोने तक जो-जो कर्म करता है वह क्रियमान कर्म है।

मनुष्य अपने पूरे जीवन मे जो-जो क्रम करता है, वो तमाम क्रियमान कर्म कहलाता है। एसे जो क्रियमान कर्म करता है वो अवश्य फल देता है उसके बाद ही वह शांत होता है।

जेसे की आप को प्यास लगी और आप ने पानी पिया, पानी पीने का कर्म किया, और आपकी प्यास मीट गई, इस प्रकार कर्म फल दे कर शांत हो गया। 

आपने किसी को गाली दी और उसने आप को थप्पड़ मारी, कर्म का फल मिल गया।

इस प्रकार क्रियमान कर्म फल भुगत ने के बाद ही शांत होता है।

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संचित कर्म:

कितने ही क्रियमान कर्म एसे होते है जो कर्म करने के साथ तुरंत फल नहीं देता, उसका फल मिलने मे देर भी लगती है। 

जब तक कर्म फल नहीं देता, तब तक वह संतुलन में रहता है, संचित रहता है। इसे संचित कर्म कहा जाता है।  

जेसे की आप ने आज परीक्षा दी, उसका परिणाम महीने बाद आता है। आज आपने किसी को थप्पड़ मारा तो वो आप को दस दिन बाद मौका देख कर थप्पड़ मारेगा, आप ने अपनी जवानी मे माँ-बाप को सताया, तो आपको आपका बेटा आपके बुढ़ापे मे सताएगा।

एसे कितने ही क्रियमान कर्म है जो तुरंत फल नहीं देते, लेकिन समय देख कर फल देता है। तब तक संचित कर्म मे एकत्रित होते है।

मनुष्य जेसा कर्म करेगा वह वैसा ही फल भी पाएगा। हम एक दिन मे कई सारे क्रियमान कर्म करते है, इन मे से कई कर्मो के फल हमे तुरंत ही मिल जात है, लेकिन इन मे से कई कर्म एसे भी है जिन का फल हमे तुरंत नहीं मिलता। 

जो संचित कर्म मे जमा होते है, यह कर्म आच्छे हो या बुरे हमे फल मिलता ही है। जब तक वह फल हम भुगतते नहीं तब तक वह शांत नहीं होता।

मनुष्य अगर इस बात को गंभीरता पूर्वक सोचे तो जीवन सरल बन जाएगा। लेकिन भोग-विलास मे पड़ा यह जीव कभी इसकी कल्पना करता ही नहीं।

राजा दशरथ ने जब श्रवण का वध किया तब उस के विरह मे मरते-मरते उसके माँ-बाप ने राजा दशरथ को अभिशाप दिया था, की तेरी मृत्यु भी तेरे पुत्र वियोग मे होगी। तब राजा को एक भी पुत्र नहीं था, इसलिए यह क्रियमान कर्म फल दे कर शांत हो गया। लेकिन वह संचित कर्म मे जमा हो गाय। 

उसके बाद राजा दशरथ को एक के बदले चार पुत्र हुए। वे बड़े हुए, शादी हुई, और जब भगवान राम का राज्याभिषेक का दिन आया तब वह संचित कर्म फल देने के लिए तत्पर हो गया, और एसे शुभ दिन भी दशरथ राजा को वह फल मिल के ही शांत हुआ, इस मे कोई विलंब नहीं हुआ।  

जो शुद्ध चैतन्य परात्पर ब्रह्म खुद मनुष्य स्वरूप लेकर इस पृथ्वी पर जन्म लिया वह राम भगवान, जिन की चरण की धूल के स्पर्श मात्र से जो शल्या को अहल्या बना शकते है, जिस के स्पर्श से पत्थर को जीवन दान मिल शकता है, वह परम ब्रह्म भगवान श्रीराम अपने पिता के आयुष्य को बढ़ा दे तो किसी का क्या जाएगा? लेकिन नहीं, कर्म के नियम का पालन होना ही चाहिए। खुदा के घर देर भी नहीं है और अंधेर भी नहीं है।

इस प्रकार क्रियमान कर्म जो फल दे कर शांत नहीं हुए है उसे संचित कर्म कहा जाता है।

प्रारब्ध कर्म:

संचित कर्म जो फल देने के लिए तैयार होते है उसे ‘प्रारब्ध कर्म’ कहा जाता है।

अनादिकाल से पुनर्जन्म के संचित कर्मो जो फल देने के लिए तैयार होते है, एसे प्रारब्ध कर्मो को भुगत ने के अनुरूप शरीर जीव को प्राप्त होता है और पूरे जीवन काल मे शरीर को उस प्रकार के प्रारब्ध कर्म भुगत ने के बाद ही जीवन समाप्त होता है। जो हमने अच्छे कर्म क्ये होंगे तो अच्छा ही फल भी मिलेगा।

जब तक जीव के संचित कर्मो का फल मिल नहीं जाता तब तक आत्मा बार-बार जन्म और मृत्यु के घेरे मे पैदा होता जाएगा।

इस प्रकार अनादिकाल से अनेक जन्मो के संचित हुए कर्मो के फल प्रारब्ध रूप से तैयार होते है, वेसे वे अलग-अलग शरीर धारण करता ही रहता है। जब तक शरीर प्राप्त होता है तब तक उसका मोक्ष नहीं होता है।

इसीलिए अनेक योनि मे मनुष्य को भटकना पड़ता है। जो नए क्रियमान कर्म करते ही रहते है, और उनमे से कई कर्म संचित होते है, जो समय देख के प्रारब्ध रूप से फल देने के लिए तैयार होते है।  

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