सोशियल मीडिया से modern generation के साथ क्या होगा।

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सोशियल मीडिया (Social Media) के कारण :

कुछ सालो पहले किताबे मनुष्य के जीवन का एक हिस्सा हुआ करती थी। इक दोस्त friend की तरह किताब मनुष्य को साथ देती थी, हमारे अभी के जीवन मे तो सोशियल मीडिया Social Media ज्यादा प्रचलित हो चुका है, सोशियल साइट पर अपना एक अकाउंट Account बनाओ फिर क्या, पूरी दुनिया आपके सामने, जी चाहे उसे अपना दोस्त बनाओ और ढेर सारी बाते करो। 

उस जमाने मे छुट्टियों मे हम साथ मे कितबे रखते थे, किताबे पढ़ाई करके उसे तकिये के नीचे रख कर सो जाते थे, वो भी एक ज़माना था।

आज के इस युग मे किताबे पढ़ाई करना कितना कम हो गया है ?

किताबों का वह स्थान आजके जमाने के इस सोशियल मीडिया ने ले लिया। सोशियल मीडिया के कुछ दौर पहले फिल्म Movies और टेलिविझन Television की भी हिस्सेदारी मानी जाती है।

फिल्मों का ज़माना आया तब से किताबे पढ़ना थोड़ा कम हुआ। किताबों मे जो कृतीयां थी उसका कोनसेप्ट विचार लेकर फिल्म बनने लगी, जिसके कारण पढ़ाई के उस पुस्तकों पर उसका असर दिखने लगा। रीडिंग मटीरियल की डिमांड मे थोड़ा घट हो गई। 

किताबों के हिस्सोका कुछ समय टेलिविझन ने ले लिया उसके बावजूद मनुष्य किताबों के पीछे अच्छा समय दे रहा था। छात्रकाल मे तो “रीडिंग” सबसे महत्व का मुद्दा होता ही है, लेकिन उसके बाद भी मनुष्य का रीडिंग (पढ़ाई) के साथ संबंध रखता था।

किताबे पढ़ने जितना समय नहीं होता है, तब कुछ अच्छा पढ़ने की तलाश मे हर इंसान की आंखे अखबारो, सामयिक को देखने उतावली रहती है। मनचाहे विषयो, पसंदीदा लेखक की कलम इस प्रकार हमारे पास पाहुच जाती।

social-media-vs-reading-books
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सोशियल मीडिया के कारण हम क्या खो रहे है ? 

लेकिन जब 21वि सदी मे सोशियल मीडिया का युग प्रारंभ हुआ, उसके साथ ही पढ़ाई करने की आदत मे भी परिवर्तन हो गया। इस दुनिया मे कितने भी संशोधन क्यू न हो जाए, इंसान के समय (घंटा)को बढ़ाया नहीं जा सकता।

फिल्म, टेलिविझन, रेडियो के जमाने मे 24 घंटे थे, इस सोशियल मीडिया के जमाने मे भी 24 घंटे ही है। चाहे जीतने यंत्र आ जाए, चाहे जीतने प्रौद्योगिकी उपकरण आ जाए, हमे उन सबको इस 24 घंटो मे ही प्रबंध करना होगा, यह बात तो पक्की है। 

नया कुछ भी आए, उसे जानने-समजने मे हमे पुराने पीछे छोड़ना पड़ता है। हमारे पास पहले के जमाने की किताबे पढ़ाई करने की आदत थी, और अब 21वी सदी मे सोशियल मीडिया है।

हमे इस पढ़ाई करने की आदत को छोड़ देना पड़ा। संशोधनकार कहते है की 21वी सदी के इंसान की पढ़ाई करने की आदत मे कठोर परिवर्तन हो गया है।

दुनियाभर मे बच्चे और युवाओ मे घटती पठनीयता को लेकर चिंता हो रही है। अमरीका मे 2016 मे बच्चो की पठनीयता के ऊपर एक संशोधन हुआ था। उसमे यह निष्कर्ष आया की  1982 तक के अमरीका के औसतन 56.90 प्रतिशत युवाओ 20-22 साल मे एक उपन्यास पढ़ लेते थे। 2015 मे अमरीका का औसतन 43.10 प्रतिशत युवाओ 20-22 साल मे एक उपन्यास पढ़ते थे। 

तीन दशको मे 20-22 साल तक कम से कम एक उपन्यास पढ़ाई कर लेने वाले युवाओ की संख्या मे 13 प्रतिशत घटाएँ हो गई हो, तो यह कोई बड़ा अंतर नहीं है।

इतने सालो मे बोहोत सारी टेक्नोलोजी का विकास हुआ, फिर भी 100 मे से 43 युवाओ ने अपने जीवन की पच्चीसवी तक एक किताब पढ़ाई कर लेते हो, तो वह अच्छी बात मनी जाती है, लेकिन मुसीबत यहीं से शुरू होती है।

हमारा समय क्यो कम होता जा रहा है ?

21वी सदी मे जन्म लेने वाली पीढ़ी इससे भी कम किताबों की पढ़ाई कर रहे है। अमरीकी संशोधन के विवरण के अनुसार 1980 के दशक मे 16 से 18 सालके 60 प्रतिशत छात्र हर दिन किताबे, अखबार या मेगेझिन पढ़ते थे, जिसका उनके स्कूल की पढ़ाई के साथ कोई संबंध नहीं था।

स्कूल मे से कहा गया की आप स्कूल की पढ़ाई के इलवा दूसरा कुछ भी पढ़ाई करे जो हमारे जीवन मे कम आ सके और हमे उन मे से कुछ शिखना मिले, उस समय के दशके मे 80 प्रतिशत छात्र थे, जो घटकर 2016 मे 16 प्रतिशत हो गए। 

यानि की 2016 मे स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के इलावा अपने जनरल नॉलेज के खातिर अखबार, मेगेझिन पढ़ाई करने वालो मे 100 मे से मात्र 16 छात्र थे। तो फिर वह स्कूल के समय के इलावा जो समय बचाता था उस समय मे वह क्या करते थे ? जवाब है – मेसेजिस, सोशियल मीडिया
यही तो हम आपको इस ब्लॉग-पोस्ट के माध्यम से समजाना चाहते है की 21 वी सदी मे जन्म लेनेवाला हर कोई इंसान 24 घंटो मे से 6 घंटे इस मेसेजिस को भेजने और पढ़ने मे खर्च कर देते है, इस लिए उनको दूसरी कोई किताबों की पढ़ाई करने की जरूरत ही नहीं होती।

यह बात सिर्फ अमरीका मे ही नहीं पूरे विश्वभर मे पढ़ाई की आदत का अभ्यास करने वाला देश ब्रिटन के एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के संशोधकों पिछले सालो मे यह निष्कर्ष पे आए थे की 20वी सदी के पिछले दसक के अंतमे 21वी सदी मे जन्मे 80 प्रतिशत छात्र केवल स्कूल की पढ़ाई की किताबे ही पढ़ते थे। 

स्कूल के अभ्यासक्रम के इलावा कुछ नया जानने की जिज्ञासा इन्टरनेट से ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पूरी कर लेते है। 100 मे से सिर्फ 12 प्रतिशत छात्र अपने स्कूल की पढ़ाई के इलावा अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए बाहरी किताबे पढ़ते है।

8 प्रतिशत छात्र अपने बाहरी ज्ञान को बढ़ाने के लिए इन्टरनेट से ऑनलाइन पढ़ाई करते है। इस संशोधन मे ज़्यादातर रीडिंग मटीरियल्स को ही शामिल किया था, उसमे अखबार और सामयिकों को पढ़ाई मे शामिल नहीं किया गया।

दूसरे एक संशोधन मे दावा हुआ था की, 15 से 35 साल की आयु-जूथ के 48 प्रतिशत युवाओ अखबार और सामयिकों को की पढ़ाई कर के बाहरी दुनिया का ज्ञान लिया। इस संशोधन मे 90 के दशक मे जन्मे इन्सानो को भी सामील किया गया। बाहरी किताबों की पढ़ाई कम होने से इंसान मे जो भय देखा गया, वो है हमारी शब्दो के साथ काम करने की क्षमता कम होना।

21वी सदी मे जन्म लेने वाली पेढ़ी की पढ़ने की आदत का संशोधन करने के बाद, संशोधकों ने एसी चिंता जताई थी की, भविष्य मे इंसानो की शब्दो के साथ काम करने की क्षमता बोहोत ही कम हो जाएगी।

आधुनिक पेढ़ी का इंसान जिस तरह कम शब्दोसे अपना काम चला लेता है, किताबे पढ़ने का कम कर देने की वजह से अपने अंदर शब्दावली की कमी हो रही है, और सिम्बोल से अपना काम चला रहे है।

इस सबको देखकर तो एसा लग रहा है की, हमारे बोलने और बाते करने मे या कुछ लिखने मे बहुत सारे शब्द विलुप्त हो जाएंगे। एक भाषा मे से दूसरी भाषा का शब्द समझ ने के लिए शब्दकोश की जरूरत होती है। 

इसी तरह चलता रहा तो हम किताबों की पढ़ाई न करने की वजह से भविष्यमे शायद हमे किसी शब्द की जानकारी नहीं होगी तब यह शब्दकोश की जरूरत पड़ने वाली है।  

समय को सही तरीके से उपयोग करना सीखे। 

सोशियल मीडिया पर ज्यादा टाइम देने से हमारा किताबे पढ़ने का समय कम हो रहा है, इस बात की चिंता हमे अधिक से अधिक व्यक्त हो रही है। यह तो एक सरल समझ है, सोशियल मीडिया मे समय खर्च हो जाने के कारण हमे दूसरी जगह देनेवाला समय कम हो जाता है।

इन्टरनेट के इस युग मे हम सोशियल मीडिया पर कम समय दे और उसी इन्टरनेट से हम पढ़ाई करने मे हमारा समय बिताए तो अच्छा है।

इस डिजिटल युग मे हम किताब को हाथ मे रखे बिना भी पूरी दुनिया के बारे मे जान सकते है। देखा जाए तो विकिपीडिया मे अंग्रेज़ी भाषा के 60 लाख, जर्मन भाषा के 23 लाख आर्टिकल्स उपलब्ध है।

हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओमे भी नए आर्टिकल्स दिन-ब-दिन बढ़ रहे है। यह इन्टरनेट की किताबे हम सब हमारे मोबाइल स्मार्ट फोन मे सीधा अपनी आंखो के सामने देखकर पढ़ाई कर सकते है।

ज्यादा बात न करके कम शब्दो मे कहा जाए तो, हमारे पास पढ़ाई करने के लिए खज़ाना अखूट है, लेकिन पढ़ाई नहीं करेंगे तो शब्द की कमी रहेगी।

Nice Days

हम भारत देश के निवासी हैं इसलिए हम अपने देश के बारे में जो भी जानकारी जानते हैं, वह सभी जानकारी जैसे की इतिहास, भूगोल, भारत के त्यौहार, आस्था आदि से जुडी जानकारी इस ब्लॉग में हिंदी भाषा में दी गई है।

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