श्रीमद भगवद गीता परिचय :
पवित्र श्रीमद भागवत गीता मे महाभारत उल्लेख अवश्य होता है। कहजता है, की जो महाभारत मे है वह सभी जगह है, और जो महाभारत मे नहीं है वह कही नहीं है।
इस संसार मे विविध तीन प्रकार के घटनाओ का सर्जन होता रहता है, तामसिक, राजसिक, सात्विक(ज्ञानी)। जब समाज में तामसिक गुणों वाले मनुष्य अति सक्रिय हो जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से ही राजसिक गुणों वाले मनुष्य भी उनके साथ विलीन हो जाते हैं। और परिणाम स्वरूप, सात्विक गुणों यानी बुद्धिमान मनुष्यों के लिए कई कठिनाइयाँ पैदा होती हैं।
महाभारत मे भगवान श्रीकृष्ण ने तामसिक गुनो वाले आसुरी जीवो का नाश किया, और अहंकारी राजसिक गुण वाले मनुष्य को जो केवल अपने खुद के स्वार्थ के लिए सिंहासन पर बैठे थे, जिनका सत्ता ही एक मात्र अंतिम लक्ष्य था, ऐसे लोगों को सिंहासन से हटा दिया, और बुद्धिमान पुरुषों को शक्ति का धनुष सौंप दिया, उनका सम्मान बढ़ाया और समाज को परम आनंद प्रदान किया।
तो देखते है की हमे भगवद गीता मे से क्या शिख मिलती है।

सब से पहले उदासी को दूर करेंगे:
जब तक हमारे अंतःकरण के ऊपर विषाद (दुख,उदासी) के बादल छाए रहेंगे, तब तक हमारे अंदर ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए विषाद को दूर करने मे ही सब की भलाई है।
निरंतर अध्ययन जारी रखना होगा:
ज्ञान की दृढ़ता हमेशा अध्ययन से ही आती है। हमारे शास्त्रो का हमे निरंतर अभ्यास रखना पड़ेगा।
केवल अध्ययन के माध्यम से ही हम ध्यान में परमात्मा के साथ एकजुट हो पाएंगे, और ज्ञान में वृद्धि कर सकेंगे। इस लिए शास्त्रो का अध्ययन जारी रखेंगे।
अपने स्वभाव को पहचानेंगे:
हमे अपने आप से मित्रता करनी होगी। जब तक हम खुद को ठीक से नहीं पहचानेंगे, तब तक हम अपने स्वभाव के दोषों को भी नहीं पहचान पाएंगे।
इस लिए अपने स्वभाव को पहचान ने के लिए खुद से दोस्ती करनी होगी।
खुद का कर्म श्रेष्ठ रूप से पूरा करेंगे:
युवा और बूढ़े सब को अपना कर्म सुंदर तरीके से और जहा तक हो सके बिना किसी भूल के हो उस दिशा मे कोशिश करनी होगी। क्योकि, कर्म को उचित न्याय देना मतलब अपने वर्तमान को सुधारना।
अपना वर्तमान सुधरेगा तभी तो हमारा भविष्य उज्वल और सुधार पाएगा। इस लिए कर्म को उचित रूप से करेंगे।
मन पर संयम रखेंगे :
हम सब जानते है की मन बहुत चंचल होता है। पूरे दिन के दौरान हमारे मन मे हजारो विचार आते-जाते रहते है। इस लिए कई बार हम अनावश्यक सोच मे खो जाते है। और हम अपना संयम और समय दोनों नष्ट कर देते है। इसलिए हमे अपने मन पर संयम रखना बहुत जरूरी है।
हमेशा शुभ के साथ रहेंगे :
शुभ हमेशा ज्ञानवर्धक होता है। शुभ चिरंजीवी होता है, सकारात्मक सोच के लिए प्रेरणा स्वरूप है, और हमारे कर्म को समाज मे उपयोगी बनाते है।
शुभ की संगति से हम प्रभु के निकट जा सकते है। इसलिए शुभ के संग रहेंगे।
स्वार्थी नहीं बनेगे :
महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों के निर्माण में हम केंद्र में स्वार्थ को पाते हैं। स्वार्थ मनुष्य को क्रूर कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए व्यक्ति को निस्वार्थ होकर अपने और समाज की भलाई के लिए काम करना चाहिए।
संदेह मत करो :
पुरुषोत्तम की शिक्षाओं पर कभी संदेह न करें। प्राणी मात्र का आरंभ और अंत श्री पुरुषोत्तम ही है। हम सभी भगवान पुरुषोत्तम पर निर्भर हैं, और यही हमारा आधार भी है। इसलिए हमे संशय नहीं बनना चाहिए।
ज्ञान मार्ग ही सर्व श्रेष्ठ मार्ग है। :
अज्ञानी प्राणी हमेशा विवाद में फंसता है। जबकि बुद्धिमान इंसान सभी को समान रूप से देखता है। उस वजह से उसे परमात्मा का शुद्ध स्वरूप के दर्शन होते है और हमेश आनंद मे लिन रहता है। इस लिए ज्ञान मार्ग श्रेष्ठ है।
मै भगवान का भक्त हु, मेरा कल्याण ही होगा :
हम सभी को खुद को भगवान के भक्त के रूप में ही देखना चाहिए। मन मे हमेशा भक्ति-भाव का एहसास बनाए रखना चाहिए। अगर मन मे भक्ति भाव का एहसास जागृत रहेगा तभी दासत्व भाव भी रहेगा, और तभी मन मे श्रद्धा रहेगी, की भगवान हमारी रक्षा करने वाला बैठा है।
इसलिए भगवान के भक्त बनेंगे और खुद के कल्याण के लिए कोई शंका नहीं रखेंगे।