बकरी ईद (बकरीद) bakarid :
बकरी ईद हर साल मुस्लिम माह जुल-हिज्जा के दसवे दिन मनाया जाता है। बकरी ईद को ईद-उल-जुहा और ईद-उल-अज़हा के नाम से भी जाना जाता है।
यह त्यौहार मुसलमानो का प्रसिध्द और बलिदान का पर्व है। इस दिन प्रातः नमाज़ पढ़ कर लोग गले मिलकर एक दूसरे को “ईद मुबारक” कहते है।
क्यों बकरी ईद मनाई जाती है ?
हालाकी हम सब लोग अपने घरमे बकरा नहीं पाल सकते, वह लोग बाज़ार से बकरा खरीद कर लाते है और इस दिन अल्लाह के लिए कुर्बान किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है की इस के पीछे की कहानी क्या है, और बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है ?

इसके पीछे एक “कुर्बानी” की कहानी है।
इस्लाम के मुताबिक धरती पर 1,24,000 खुदा के पैगंबर आए थे। जिन्हे खुदा ने भेजा था। पैगंबर यानि वो इंसान जिसे खुदाने भेजा होता हे।
इन्ही मे से एक थे पैगंबर हजरत इब्राहिम, जो मुस्लिमो के नवी थे। जिन्हे अल्लाह ने अपना दूत बना कर जनता की रहनुमाइ के लिए भेजा था, इस्लाम के जानकारो की माने तो यह त्यौहार एक ख्वाब से जुड़ा हुवा है।
हाला की इस कुर्बानी की दास्तां एसी है की जिसे सुन कर दिल कांप जाता है, बात हज़रत इब्राहिम की हे, जीन्हे अल्लाह का बंदा माना जाता है जिनकी इबादत पैगंबर की तौर पर की जाती है,
जिनहे हर एक इस्लाम द्वारा अल्लाह का दर्जा प्राप्त है जिसे इस ओदे से नवाजा गया है, उस शक्स का खुदाने खुद इम्तहान लिया था खुदाने हज़रत मोहम्मद साहब के स्वप्न मे उनका इम्तहान लेने के लिए ये आदेश दिया की अपनी सबसे प्यारी चीज़ अल्लाह के सामने कुर्बान करेंगे।
हज़रत इब्राहिम के यहा 80 साल की उम्र मे बच्चा पैदा हुआ था जाहीर सी बात हे की हज़रत इब्राहिम के लिए उस वक्त उस बच्चे से प्यारी कोई चीज़ नहीं होंगी।
लेकिन जैसा की स्वप्न हज़रत इब्राहिम को आया था उसके मुताबिक उन्हे अल्लाह का वो हुक्म भी मानना था। सपने मे अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से कहा था के वो अपनी सबसे प्यारी चीज़ खुदा के लिए कुर्बान करेंगे। हाला की यह एक भक्त का इम्तेहान हो रहा था।
हज़रत इब्राहिम के बेटे इस्माइल की कुर्बानी का किस्सा “कुरान” मे भी मौजूद है। उन्होने स्वप्न आने से अपने बेटे इस्माइल से पूछा की मुझे अल्लाह ने तुझे कुर्बान करने के लिए कहा है यानि की सब से प्यारी चीज़ मेरे लिए तुम ही हो,
इस्माइल ने इसके बाद कहा की अब्बूजान आपको जो हुक्म अल्लाह के द्वारा दिया जा रहा है आप उस फर्ज को निभाए यहा सिर्फ अल्लाह कुर्बानी नहीं बल्कि सब्र का इम्तहान ले रहे थे और इस्माइल शायद ये बात जानते थे ,
अब हज़रत इब्राहिम के लिए 80 साल की उम्र मे पैदा हुई औलाद पर छुरी चलाना इतना आसान तो नहीं था लेकिन अल्लाह का हुक्म था वफादारी थी अपना फर्झ निभाना था तो आखिरकार हज़रत इब्राहिम ने यह तय किया की वो अपने बेटे को अल्लाह के लिए कुर्बान करेंगे,
हज़रत इब्रहीमने एक रस्सी, एक छुरी और आंखो पर बांधने के लिए एक पट्टी साथ ली और अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने के लिए चल दिये।
जब हज़रत इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे और छुरी गर्दन पर चलने ही वाली थी तभी अल्लाहने अपने बंदे को आदेश दिया की जाओ और इस्माइल की जगह पर एक जानवर(बकरा) को पेश कर दो,
हज़रत इब्राहिम ने उस वक्त छुरी चला दी, इस्माइल बच गए और उनकी जगह जानवर(बकरा) कुर्बान हो गया। और इसी समय से कुर्बानी की यह रश्म आज तक चलती आ रही है।
हज़रत इब्राहिम ने कुर्बानी कैसे दी ?
दरअसल हज़रत ईब्राहिम से जो कुर्बानी मांगी गई थी वह उनकी खुद की कुर्बानी थी अर्थात यह की उनके पास जो खुशी-आराम था, उसे वह पूर्ण रूप से भूलकर अपने आपको मानवता की सेवामे लगा दे।
इस लिए हज़रत इब्रहीम ने अपने बेटे इस्माइल और उनकी बीवी हाजरा को मक्का मे रहने का सोचा, उस समय मक्का मे कुछ नहीं था फिर भी वो अपने बेटे और बीवी को वहा छोड़ कर खुद मानवता की सेवा करने के लिए वहा से निकल गए।
हम सभी जानते है की मक्का मे उस समय कुछ नहीं था सिर्फ रेगिस्तान ही था रेगिस्तान मे अपने परिवार बेटे और बीवी को छोडना एक कुर्बानी ही थी।
बकरी ईद (बकरीद) Bakrid Festival से प्रेरणा।
आज कई जगहो पर देखने को मिलता है की बकरी ईद (ईद-उल-जुहा) के दिन कई मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की बली ना देकर, अपने परिवार से दूर रहकर गरीब और ज़रूरियातमंद लोगो को खाना और आर्थिक रूप से सहायता करते है।
इस प्रकार वह लोग अपने परिवार को छोड़ कर अपने आपको मानवता की सेवा कर के अपनी कुर्बानी प्रकट करते है।