ईद-उल –फितर रमज़ान ईद के बारेमे माहिती। Eid-Ul-Fitar eid

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ईद-उल –फितर परिचय :

ईद-उल –फितर खुदाकी बंदगी का दिन, हर साल लौटके अनेवाली खुशी ईद है। ईद का महत्व इस्लाम मे बाहरी खुशी के लिए सीमित नहीं है।

ईद की खुशी के साथ इबादत, समानता, एकता, समर्पण और खुदा की मेहरबानियों का शुक्रिया अदा करने की भावनाए जुड़ी होती है।

ईद-उल-फितर कब मनाया जाता है ?

ईद-उल –फितर या सरल भाषा मे कहा जाए तो, “ईद” मुख्य रूप से अरबी शब्द है और “फ़ितर” का अर्थ है उपवास तोड़ना। यह “ईद-उल-फितर” का मतलब एक इस्लामिक प्रार्थना है, अधिकतर बड़े हॉल मे समूह मे की जाती है।

रमज़ान के इस पवित्र महीने मे हर मुसलमान रोज़ा रख कर खुदा की बंदगी करते है और पुराने शरीफ पढ़ कर अपने जीवन मे उसका अनुसरण करनेका प्रयास करते है ।

ईद-उल-फितर और ईद-उल-अधा यह दोनों दिन मुस्लिम समुदाय अपने खुदा के प्रति आदरभाव और आभार की भावना व्यक्त करके उनकी बंदगी करते है।

आजसे 1392 साल पहले इस्लाम समर्थकोने ईद-उल-फ़ितर का उत्सव करने की शुरुआत की थी।  वयस्क आयु वर्ग मे आने वाले सभी मुसलमान को हिजरी स.न. दूसरी ई.स. 623 के रमजान महीने से रोजा रखने को कहा गया,

और उसके साथ ही पैगंबर साहब (हजरत महंमद स.अ.व.)को अल्लाह ने ईद-उल-फितर की नमाज़ और सदका-ए-फ़ितर के लिए आयत करने को फरमाया था।

बेशक वह इंसान सफल होता है जिसने बुराई से खुदकों पाक साफ किया और अल्लाह का नाम लेकर नमाज़ अदा की। हजरत अब्दुल अली और हजरत उमर बिन अब्दुल अझिझ ने यह आयत का अर्थघटन किया और बताया की “ वह इंसान उसके जीवन मे सफल होता है जिसने सदका-ए-फ़ितर अदा की और ईद-उल-फितर की नमाज़ पढ़ी। इस तरह ईद-उल-फितर का आरंभ हुआ।

जिस रात ईद का चांद दिखाई देता है उस रात को लैलतुल जाइझा कहा जाता है। अर्थात इनाम और इकराम पाने की रात, लैलतुल जाइझा की रात को इबादत करने का सवाब मिलता है।  जो कोई इस रात इबादत करता है उसके लिए जन्नत का रास्ता खुल जाता है।

दुआ के लिए जब भी अल्लाह के दरबार मे हाथ फेलाए तब सभी जीव-जन्तु के हक मे दुआ मांगे। हम तो गुनहगार है हमारे सभी दिन गुनाह से गुजरते है इस मुबारक रात का इबादत करन सबके नसीब मे नहीं होता। चेहरे पर गम, आवाज़ मे दर्द, आंखो मे पानी और दिलमे उदासी के साथ अपने गुनाहो की माफी मांगनी चाहिए।   

ईद-उल-फितर
ईद-उल-फितर

ईद-उल-फ़ितर के इस पर्व से हमे क्या संदेश मिलता है ?

रमज़ान के इस पवित्र महीने मे आने वाला यह पर्व ईद-उल-फितर अल्लाह का पैगाम अनुसारने का सन्देस देता है। रोज़ा करने का अर्थ सिर्फ भूखा रहना नहीं होता किन्तु मन, कर्म और शब्दो से किसीको दुख नहीं देना चाहिए होता है।

यह पर्व पूरे विश्व मे प्यार, एकता और शांति का संदेश देता है।   जब मोहम्मद पैगंबर ने धार्मिक ग्रंथ ‘कुरान’ के बारे मे जाना वह महिना रमज़ान का था।

अल्लाह ने इस पैगंबर को इस कुरान को आगे ले जाने वाले के रूप मे पसंद किया। रमज़ान महीने के अंतिम दिनो को खास माना जाता है क्यों की इस दिनो मे पैगंबर ने ‘कुरान’ ग्रंथ को पूरा किया था। मोहम्मद पैगंबर का जन्म एक संत के रूप मे हुआ था,

किन्तु उन के समय मे ज्यादा हिंसा का महोल था और उसके आसपास के लोग जिस तरह जी रहे थे उनसे वह निराशा और शर्म की अनुभूति होती थी। 

वह अपने आसपास की दुनिया को छोडके एकांत बिताने के लिए जंगलमे चले गए। इस दौरान उन्होने माउंट हिजरा मे दिन और राते बिताई और एस दौरान उपवास किए अल्लाह की इबादत की। आखिर मे अल्लाह ने उनको सही रास्ता बताया।

अल्लाहने ज्ञान के सही शब्दो को बांटने के लिए उनकी पसंदगी की थी। इस लिए सभी मुसलमान रमज़ान महीने मे रोज़ा रखते है और बुराईओ को अपने जीवन से दूर रखते है।

एक सामान्य व्यक्ति हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से बंधा होता है एसे समय मे अल्लाह से मिलाप करने का सही समय नहीं होता इस लिए वे रोज़ा करके अल्लाह की बंदगी करते है और खाने के प्रति अपना आकर्षण कम कर के अल्लाह मे तल्लीन हो जाते है।

सुबह के समय खाना खनेका अर्थ यह होता है की इस दुनिया से दूर और पूरी तरह से अल्लाह मे खो जाना, जब की रात के समय खाना खाने का अर्थ पूरी दुनिया हम देख रहे है और उन सभी से दूर होकर अपने अंतर मन के अंदर दाखिल होना।  

Nice Days

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