मानव मंदिर क्या होता है ? maanav mandir kya hota hai ?

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मानव मंदिर

दिल एक मंदिर, मन एक मंदिर या फिर घर एक मंदिर एसे वाक्य मनुष्य कितनी आसानी से बोलता है, लेकिन इस बात को अपने जीवन मे अनुसरना उतना ही मुश्किल होता है।

रोज़ सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर के फल-फूल लेकर मंदिर जाते है, लेकिन मनुष्य यह भूल जाता है की यह शरीर भी तो प्रभु ने ही बनाया है, यह भी तो एक मानव मंदिर है। जहा आत्मा रूपी परमात्मा बिराजमान है, भगवान की प्रतिष्ठा पहले हमारे ह्रदय मे होनी चाहिए, जिसका पूजारी मनुष्य स्वयं खुद है।

मन की सफाई

हमारा यह मानव मंदिर सभी विकारो से रहित साफ और सुंदर होगा तभी हम जो बाहर सेवा, पूजा,अर्चना करते है वह सार्थक होगी। तभी मन मे बेठे परमात्मा हमारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे।

साफ और सुंदर दिखने का अर्थ केवल स्नान कर के स्वछ कपड़े पहन ने तक सीमित नहीं है। हम सभी मंदिरो मे स्वछता का आग्रह रखते है, तो फिर हमारे मन मे जो मेल, द्वेष, ईर्ष्य है उसे भी साफ कर के प्रभु के दरबार मे जाना चाहिए। प्रभू के सामने हमे खुली किताब की तरह रहना चाहिए, सही मे तो जिसके मन  मे राम बसे हो उसे किसी भी बात की ईर्ष्य, द्वेष नहीं हो सकता।

जिस प्रकार साफ और स्वछ जगह सभी को पसंद आती है, उसी प्रकार मनुष्य के मन की स्वछता भी सभी को पसंद आती है, और वह हमे दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती वह तो खुद दिखाई देती है।

Maanav-mandir-kya-hota-hai
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अच्छे विचार से मन की शुद्धी

मन की शुद्धि के लिए अच्छे विचार लाना जरूरी है। अच्छे विचार से ही मन पवित्र होता है, और मन मे बसे परमात्मा का हम अनुभव कर सकते है।

इस दुनिया मे सुख भगवान ने दिया है, दुख भी भगवान ने ही दिया है। आचार-विचार शुद्ध हो तो किसी पर भी द्वेष या क्रोध होगा ही नहीं।

बचपन से ही अच्छे संस्कार दिये जाए तो उसका भविष्य उज्वल ही होगा। जीतने अच्छे संस्कार देंगे उतना ही खुद को और समाज को लाभ होगा।

घर के सभी बड़े-बच्चे एक साथ बेठ कर एक-दूसरे को अच्छे विचारो का महत्व समझाये तो मन मे रहे मेल को साफ कर सकते है, और एसा करने से घर मे शांति बनी रहेगी।

मन मे गंदकी रख कर मंदिरो मे सर झुका ने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि परमेश्वर से कुछ छुपा नहीं है, वो तो सब जानते ही है। इसीलिए हमारे इस मानव मंदिर को जितन बाहर से देखभाल करते है, इस से विशेष अंदर की देखभाल करना भी जरूरी है।

मन मे प्रेम की आवश्यकता

जहा प्रेम हो वहा प्रभु है। प्रेम न कही पैदा होता है और न कही बिकता है। यदि प्रेम कही पैदा हुआ होता या फिर कही बिकता होता तो कोई भी उसे खरीद सकता था।

प्रेम से स्थूल- सूक्ष्म, जड़-चेतन, किसी भी वस्तु,व्यक्ति, या फिर भाव के प्रति कभी भी हो सकता है। प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन तथा पशु-पक्षी का जीवन व्यर्थ है।

प्रेम रूपी मन ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। यदि हमारा मन प्रेम से भरा होगा तो हम मे ईर्ष्य, द्वेष, क्रोध आदि जो शरीर के शत्रु है उसका हमारे मन पर कोई असर नहीं होगा। जब मन साफ और प्रेम से भरा हो तो शरीर भी प्रफुल्लित रहेगा, और शारीरिक पीड़ा या फिर मानसिक पीड़ा का हमारे जीवन पर कोई असर नहीं होगा।     

जीवन को सफल बनाने के लिए पवित्र ह्रदय, पवित्र विचार एवं पवित्र आचार करना आवश्यक है, इसी से ही मानसिक शांति और शारीरिक शांति मिलती है।

शुभ कर्मो से मन की शांति  

शुभ और पुण्य कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। किसी न किसी स्वरूप मे हमे अच्छे कर्मो का फल अवश्य मिलता है। इसीलिए हमे हमारे जीवन मे शुभ और पुण्य कर्म करना चाहिए।

जब हम कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, तो फिर बुरे कर्म करके उसका बुरा फल क्यों भूकते? इस के बदले हमे हमेशा मीठे फल मिले एसे अच्छे और पुण्य कर्म करके इस जीवन को धन्य और सफल बनाना चाहिए।  

हमे हमेशा सत्य के मार्ग पर चल कर शुभ कर्म करना चाहिए, तभी हम सुखी और आनंद से रह शकेंगे। हम ने जो भी कर्म किए है उसका फल हमे सुख या दुख के रूप मे मिलता है।

हमारा शरीर एक खेत है, हमारा मन किशन है, और पाप-पुण्य बीज है। इस मे से हम जेसे बीज डालेंगे वैसे ही बीज पकेंगे। इसी तरह से हम जेसे कर्म करेंगे फल भी वैसा ही मिलेगा। जो कोई बुरे कर्म करके सुख की इच्छा रखता हो तो वो कैसे मिलेगा? जब बबुल का बीज बोया है तो कांटे ही मिलेंगे, उस पर आम नहीं उगेंगे।

मनुष्य जहा-जहा जाता है, वहा उसके कर्म भी उसके साथ जाते है। जो कर्म उसका भाग्य बन जाते है उसको भुगत ना ही  पड़ता है।  

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