भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है ?

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श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम :

भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता है। उनके धर्म में तत्परता है, वाणी में मधुरता, दान में उत्साह, मित्र के साथ ईमानदारी, गुरुओं के प्रति नम्रता, मन में अत्यधिक गंभीरता, आचरण में पवित्रता, गुणों में जिज्ञासा, शास्त्रों में अच्छी प्रवीणता, रूप में सौंदर्य और शिव की भक्ति है।

रामचंद्रजी सभी में योग्यता देखते हैं !

दशरथ राजा को अपने पुत्रो पर बहुत गर्व रहता है, उन्होने वसिष्ठ और विश्वामित्र जेसे गुरुओ के पास शिक्षा दिलाई थी। इसीलिए उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।

भगवान श्री राम ने वेदविद्या, धनुविद्या और राजविद्या शिखी। श्री रामजी के गुणो का विवरण करने मे वाल्मीकिजी थकते नहीं थे, वे कहते है- श्री राम सभी गुणो के भंडार है, उनकी तुलना किसीसे नहीं की जा सकती, उनके जैसा इस संसार मे कोई नहीं है तो फिर उनसे अधिक कैसे हो सकता है? इसीलिए ही हटे है की – रामचन्द्रजी जैसे तो रामचन्द्रजी ही है।

भगवान श्री राम सभी मे गुण और योग्यता ही देखते है, किसीमे वे दुर्गुननहीं देखते है। अगर कोई कठोर वचन भी कह दे तो भी वे सामने से कठोर वचन नहीं देते। दूसरों द्वारा किए गए अपमान को भी भूल कर उनके छोटे से उपकार के वे ऋणी समझते है।

श्रीराम चंद्रजी अपने से बड़े और ज्ञान से भरपूर वृद्ध व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त करनेके लिए हमेशा तैयार रहते है। वे खुद एक महान पराक्रमी है लेकिन उन्हे कोई अभिमान नहीं है, वे दयालु है, वे धर्मपरायण है, विपरीत परिस्थितियों मे भी वे सच ही बोलते है।

भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है ?
भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है ?

श्री रामजी की माता-पिता की भक्ति भी अद्भुत थी !

भगवान श्री राम जितना प्रेम कौशल्या और सुमित्रा को करते थे उतना ही प्रेम उनको चौदह वर्ष तक वन मे भेज ने वाली और अपने युवराज के पद को भी छिनने वाली कैकेयी के प्रति भी उतना ही प्रेम रखते थे। चित्रकूट से लौटते समय भगवान राम ने भरत से कहा था की, भाई भरत ! माता कैकेयी ने जो किया है, उसे भूल जाना और उनके साथ हमेशा एसा ही व्यवहार करना जैसा पूजनीय माता के साथ करना चाहिए।

श्री राम ने शत्रुघ्न को भी समझाया था की तुम कभी भी माता कैकेयी से क्रोधित नहीं रहोगे, और हमेशा उनकी सेवा करोगे। जब वनवास के दौरान एक बार लक्ष्मण ने माता कैकेयी की निंदा की तब श्री राम ने लक्ष्मण को भी कहा की तुम्हें एसा नहीं कहना चाहिए, वह माता कौशल्या और माता सुमित्रा के समान ही है।  

भगवान श्री राम अपने पिताजी के प्रति भी उतना ही प्रेम दर्शाते थे। जब माता कैकेयी ने पिछले अधूरे वचन को पूरा करने के लिए महाराज दशरथ को मजबूर किया, तब भगवान श्री राम ने कहा – मै पिताजी दशरथ के कहने पर आग मे भी कूद शकता हू, उनके कहने से झहर भी पी शकता हू और समुद्र मे भी गिर शकता हू।

पिताजी की आज्ञा का पालन करना ही सब से बड़ा धर्म है। श्री राम ने अपनी माता कौशल्या को भी कहा दिया की मै आपकी चरणो मे शिर झुका कर क्षमा मांगता हू, मुझमे पिताजी के वचन को तोड़ने की हिम्मत नहीं है, इसलिए मै वन मे ही जाना चाहता हू।

इस प्रकार भगवान श्री राम सभी के लिए पूजनीय है, उनमे अगणित गुण है, उन के समान मर्यादा रक्षक अभी तक इस धरती पर कोई हुआ नहीं है, इस लिए उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

श्री राम की महानता !

हम सब भगवान के नाम तो जानते है कि, भगवान श्री राम, भगवान श्री कृष्ण, हनुमानजी है, लेकिन उनके स्वरूप उनका आदेश, उनकी शिक्षा और मानव जीवन के साथ उनका संबंध ये सब हम भूल गए है।

हनुमानजी ने अपना पूरा जीवन भगवान के कम मे लगा दीयथा, और हम हनुमान चालीसा तक ही सीमित रह गए है। समुद्र पर सेतु बनाते समय गिलहरी ने सोचा की मुझे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। वह गिलहरी अपनी पीठ पे रेत लेकर समुद्र मे डाल देती थी, जिससे भगवान सरी राम का काम सरल हो जाए।

भगवान श्री राम ने गिलहरी का पुरुषार्थ और त्याग देखा और उसकी पीठ पर हाथ घुमाया, और आज उनके बच्चो पर भी भगवान की उँगलियों के निशान देखने को मिलते है। तो क्या हम गिलहरी से भी छोटे है?

जटायु की आदर्शता देखिये, उसने जब माता सीताजी का अपहरण होते देखा तो उसने सोचा की मै बूढ़ा पक्षी हूँ तो क्या हुआ? मर जाऊंगा लेकिन विजयी हो जाऊंगा। और वह अपनी चोंच की मदद से रावण के साथ लड़ने लगा।

इस दुनिया मे कई लोग एसे है जिनको जीत नहीं मिली, हार हाये लेकिन फिरभि वह विजयी कहे गए। जटायु रावण के साथ लड़ते-लड़ते जमीन पर गिर गया। जब भगवान श्री राम आए तो उन्होने अपने आसुओं से जटायु का अभिषेक किया। जटायु भगवान की छाती से चिपके हुए थे। आदर्श के लिए मर-मिटने वाले जटायु।

भगवान को पा ने की यही रीत है। भगवान राम का प्रेम जटायु जैसे लोगो के लिए सुरक्षित है। गिलहरी जैसी श्रद्धा, हनुमानजी जैसा समर्पण, यही भगवान का स्वरूप है।

श्री राम दूत हनुमानजी !

रामायण जिस प्रकार श्री राम ने अपने चरित्र, सामर्थ्य और दिव्य गुणो से देवत्व प्राप्त किया है, उसी प्रकार हनुमानजी ने भी अपनी बुद्धि, विद्वता और अद्वितीय दास्यभाव से लोगों के दिलो मे एक प्रतिष्ठित और सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है।   

संसार के सात चिरंजीवी में गिने जाने वाले श्रीराम भक्त हनुमानजी एक सज्जन, नायक, राजनीतिज्ञ और ऋषि थे। वे वेदों, उपनिषदों, मनोविज्ञान और नैतिकता के अच्छे जानकार थे। उनकी प्रवचन काला से प्रभावित हो कर, भगवान श्री राम ने उन्हे पुरुषोत्तम की उपाधि दी थी। बुद्धिमानों में श्रेष्ठ है हनुमानजी।

कठिन से कठिन सेवा कार्य हनुमानाजी ही कर शकते है। जब माता सीताजी को ढूंढ कर वापस आ रहे थे, तब भगवान श्री राम उन्हे कोई मूल्यवान भेट देना चाहते थे, लेकिन सांसरिक वस्तुओं से ‘प्रेम’ श्रेष्ठ है। ईएसए सोचा कर उन्होने हनुमानजी को एक प्यारा सा आलिंगन किया।

भगवान राम का कितना नेक उपहार है, इतना ही नहीं, रामजी के बरेमे सोचने वाले हनुमानजी है। हनुमाजी भी अपनी अंतरतम उर्मिओ का परस्परिक और अनुपम प्रेम से भगवान श्री राम के ह्रदयसिंहासन पे अपना स्थान प्राप्त किया।   

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