मकर संक्रांति उत्सव के बारे में महत्व की जानकारी।

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मकर संक्रांति (Makar Sankranti) परिचय :

हमारे ऋषि-मुनियो ने बदलते काल-चक्र को ध्यान मे रखकर मनुष्य को ज्यादा लाभ देने के लिए विविध त्यौहार और व्रतो का विधान किया है। एसा ही एक त्यौहार है, मकर संक्रांति।

मकर संक्रांति भगवान सूर्यदेव जो सम्पूर्ण पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करते है, उनकी उपासना के लिए मनाया जाने वाला एक महत्व का त्यौहारा है।

भारतीय समय के अनुसार सूर्य एक वर्ष मे बारह राशियो मे प्रवेश करता है।

यह त्यौहार प्राचीन समय से मनाया जाता है। इस दिन श्री संक्रांति देवी ने संकरासुर अशुर का वध किया था। और सभी लोगो को सुखी किया था।

मकर संक्रांति का मतलब :

मकरसंक्रांति का त्यौहार पौष महीने मे आता है, अँग्रेजी केलेंडर के अनुसार यह त्यौहार 14 या फिर 15 जनवरी को आता है। कहा जाता है की इसी दिन से सूर्य का उत्तरायन शुरू होता है। इस समय सूर्य की पृथ्वी के सापेक्ष चाल दक्षिण गोलार्ध  से उत्तर गोलार्ध की तरफ से शुरू होती है। इस लिए इस पर्व को उत्तरायन भी कहते है।  

जेष्ठ महीने मे सूर्य मकर राशि से कर्क राशि मे और पौष महीने मे कर्क राशि से मकर राशि मे संक्रमण करता है, इस संक्रमण को संक्रांत कहते है। मकरसंक्रांति 14 जनवरी से 21 जून यानि कर्कसंक्रांति तक का होता है। इस के बाद दक्षिणायन शुरू होता है, यह समय कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक यानि 21 जून से 14 जनवरी तक का होता है।

एक मान्यता के अनुसार मकरसंक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव को मिलने के लिए जाते है, शनिदेव मकर राशि के स्वामी माने गए है, इस लिए इस त्यौहार को मकरसंक्रांति कहा जाता है।  

धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन तीर्थ स्नान, जप-तप और धार्मिक अनुष्ठानों का बडा महत्व है। माना जाता है की सूर्य का दक्षिणायन देवताओ की रात्री और उत्तरायन देवताओ के दिन माना गया है, दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायन को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

मकर संक्रांति उत्सव के बारे में महत्व की जानकारी।
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मकर संक्रांति का महत्व : 

भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार सभी तिथियाँ चंद्र की गति के आधार से निर्धारित की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इस कारण से यह त्यौहार प्रति साल 14 जनवरी को ही आता है।

मकर संक्रांति के दिन दान का बड़ा महत्व है। इस दिन किए गए दान और गंगा स्नान को शुभ बताया गया है। इस त्यौहार पर प्रयाग और गंगा सागर के स्नान को महास्नान कहा जाता है।

एक मान्यता के अनुसार इस दिन किए गए दान का फल सौ गुना बढ़ जाता है, और हमे पुनः प्राप्त होता है।

भारत और भारत के बाहर मकर संक्रांति :

भारत त्यौहारो का देश है। यहा विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाए जाते है। अलग-अलग जगहो पर अलग-अलग रीति या फिर नाम से त्यौहारो को मनाया जाता है। एसा ही एक त्यौहार है मकर संक्रांति

यह त्यौहार भारत तथा नेपाल मे अलग-अलग नाम तथा अलग-अलग रिवाजो से मनाए जाने वाला एक धार्मिक पर्व है। इस पर्व को सभी जगहो पर बड़े उत्साह और भक्ति-भाव से मनाया जाता है।

मकरसंक्रांति को उत्तर प्रदेश मे और पश्चिम बिहार मे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है, गुजरात और उत्तराखंड मे उत्तरायन कहा जाता है, कर्नाटक मे मकर संक्रमण, पंजाब मे लोहड़ी, हरियाना और हिमाचल प्रदेश मे माघी और छत्तीसगढ़, केरल, गोवा, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मणिपुर, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिस्सा, झारखंड तेलंगाना, मध्यप्रदेश आदि जगहो पर इस त्यौहार को मकरसंक्रांति के नाम से ही जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश :

यहा मकरसंक्रांति के दिन दान का महत्व है, यहा पर हर साल इलाहाबाद मे गंगा और यमुना के संगम पर एक महीने तक का मेला लगता है, जिसे माघ मेला कहते है। 14 जनवरी से माघ मेले की शुरुआत हो जाती है।

माघ मेले का पहला स्नान मकरसंक्रांति से शुरू हो कर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है। यहा पर इस दिन को खिचड़ी कहा जाता है और इस दिन खिचड़ी खाने की और उसे दान मे देने की प्रथा है।

गुजरात :

इस राज्य मे इस दिन उत्तरायन के नाम से जाना जाता है। इस दिन गुजरता मे तिल और गुड के लड्डू बनाए जाते है, और पतंग उड़ाए जाते है। लड्डू को स्नेही तथा आस-पड़ोस मे दिये जाते है, और एक-दूसरे के प्रति कड़वाहट हो उसे दूर करते है।

इस दिन गुजरात के अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत आदि जगहो पर पतंग की प्रतियोगिता योजी जाती है। इस के अलावा गुजरात के गवों मे भी बच्चे, जवान सभी लोग पतंग उड़ा कर इस दिन को मनाते है।

पंजाब और हरियाणा :

यहा मकरसंक्रांति को लोहड़ी के नाम से जाना जाता है। यहा पर एक दिन पहले ही इस त्यौहार को मनाया जाता है। यानि 13 जनवरी को अंधेरा होती ही आग जला कर अग्निदेव की पुजा करते है, और तिलचौली यानि चावल, तिल, गुड और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है।  

इस दिन मूँगफली और तिल की बनी गज़क और रेवड़िया एक-दूसरे को बाँट कर खुशी मनाते है। लड़कियां घर-घर जा कर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती है। इस दिन मक्के की रोटी और सरसों का साग भी खाया जाता है। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व है।

भारत के बाहर भी कई नामो से मकरसंक्रांति को जाना जाता है। नेपाल मे माघी संक्रांति या खिचड़ी संक्रांति कहा जाता है। म्यांमार मे थींयान, बांग्लादेश मे पौष संक्रांति, श्रीलंका मे पोंगल या उझवर तिरुनल। इस प्रकार मकरसंक्रांति भारत के साथ दूसरे देशो मे भी मशहूर पर्व है।

नेपाल :

यहा मकरसंक्रांति के दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है। यहा पर मकरसंक्रांति को माघे संक्रांति, सूर्योत्तरायन और माघी कहा जाता है। थारू समुदाय मे यह त्यौहार प्रमुख है।

नेपाल मे थारू समुदाय के अलावा अन्य समुदाय भी इस पर्व को मनाते है, दान-धर्म करके, तिल, घी, गुड खाते है और कंदमूल खा कर इस त्यौहार का आनंद लेते है। कई लोग नदियो के संगम मे स्नान करते है।   

तिल का महत्व :

आयुर्वेद के अनुसार शरदी के दिनो मे आनेवाली मकरसंक्रांति मे भरपूर तिल खाना श्वास्थ्य के लिए लाभ दायक है। तिल पाचन मे हल्का है और वातनाशक होता है।  तिल का शेवन करने से व्यक्ति को शक्ति एवं चैतन्य मिलता है। शारीरिक शुद्धि होती है।

इस दिन कई लोग भगवान शंकर के मंदिरो मे जा कर तिल के तेल का दीपक जलाते है।

मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड के लड्डू खाने की प्रथा है, और इस दिन तिल और गुड से मिली रोटी भी बनाई जाता है।  

इस दिन तिल-गुड के लड्डू को एक-दूसरे के घर देने से दूसरों के प्रति हमारे मन मे जो नकारात्मक्ता होती है वह दूर हो जाती है और निकटता बढ़ती है।

मकरसंक्रांति के दिन बड़े-छोटे सभी को तिल-गुड के लड्डू देने की प्रथा है, इस दिन सब लोग अपने परिजन या स्नेही को यह लड्डू देने के लिए जाते है।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति मे मकरसंक्रांति का यह त्यौहार आपस की बैर भूलाकर प्रेम-भाव की सीख देता है।  

Nice Days

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