करवा चौथ क्यों मनाया जाता है ? हिन्दी मे जानकारी ।

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करवा चौथ परिचय :

करवा चौथ एक एसा पर्व है जो सौभाग्यवती स्त्री (सुहागिन) के द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म का एक महत्व का और प्रमुख पर्व मे से एक है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व है।

करवा चौथ का महत्व :

करवा चौथ भारत देश के कई राज्यो मे मनाया जाता है। जिन मे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्य मे सब से ज्यादा यह त्योहार मनाया जाता है।

करवा चौथ का व्रत सौभाग्यवती स्त्रियो के द्वारा अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करने के लिए करती है। जो सुबह सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे के बाद शुरू हो जाता है, और रात को चाँद का दर्शन कर के समाप्त किया जाता है।

भारत मे सभी जगहो पर करवा चौथ का व्रत बड़ी ही श्रद्धा से और उत्साह से किया जाता है। यह व्रत करने से अपने पति की दीर्घायु और महिलाए अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति करती है।

करवा चौथ के दिन भालचन्द्र गणेशजी की पूजा-अर्चना की जाती है। और दिन भर उपवास किया जाता है, और रात को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद उपवास पूरा किया जाता है। यह व्रत सुहागिन स्त्री आजीवन या फिर 12 वर्ष या 16 वर्ष तक लगातार कर सकती है।

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करवा चौथ क्यों मनाया जाता है ?

करवा चौथ करने की विधि :

करवा चौथ का व्रत भारत के अलग-अलग जगहो पर अलग-अलग तरीके से किया जाता है, लेकिन इस व्रत करने के पीछे सब की एक ही कामना होती है अपने पति की दीर्घायु और उसका स्वास्थ्य।

इस दिन सौभाग्यवती स्त्रीए सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके पूरा दिन निराहार रहती है, और शाम को पुजा करती है, पुजा करने से पहले फिर स्नान करके नए कपड़े पहनती है और सोलह सिंगार करती है।

करावा चौथ की पूजा :

इसमे भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय जी, श्री गणेश जी, नंदी जी, चंद्रमा की पूजा की जाती है।

अगर देवताओ की मूर्ति नहीं हो तो सुपारी भी ले शकते है, जिस मे नाड़ा बांध कर मन मे देवताओ की भावना रखे और स्थापित करे। फिर द्व्ता और माता पार्वती की पूजन-अर्चन करे।

करवों मे पानी भरे और उसमे अक्षत और फूल डाले, उस के ऊपर लड्डू का नैवेध रखे। करवा चौथ व्रत की कथा पढे, पूजन समापन करे।

जब चंद्रमा निकले तब उनकी पूजा करे, और अर्ध्य अर्पित करे। फिर पति के हाथ से पानी पी कर व्रत तोड़े। इसके बाद माता-पिता, ब्राह्मण, पति और सुहागिन स्त्रीओ को भोजन कराये।

और ब्राह्मणो को दान दे। अपनी सासु को कोई अच्छा भेट दे, और आशीर्वाद ले। इस के बाद खुद भोजन ग्रहण करे।

करावा चौथ की कथा :

एक साहूकार के सात बेटे और उन सातों भाइयो की एक बहन करवा थी। सभी भाई अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करते थे। सातों भाई पहले बहन को खिलाते थे उसके बाद खुद खाते थे।  

एक बार करवा अपने ससुराल से मायके आई थी। सभी भाई शाम को अपना व्यवसाय बंध करके वापस घर आए, तब उन लोगो ने देखा की उनकी बहन करवा बहुत व्याकुल थी।

जब उनके भाइयो ने करवा को खाने के लिए कहा तब उसने कहा की चाँद नहीं आया है, जब चाँद निकलेगा तब उसे अर्क दे कर ही मे भोजन करूंगी।

बहन करवा की व्याकुलता उन सातों भाइयो से देखि नहीं जाती थी, इस लिए सातो भाइयो ने मिलकर उसके नगर के बाहर जा कर एक पहाड़ी पर अग्नि को जलाया, और फिर छलनी से प्रकाश दिखा कर अपनी बहन करवा से कहा की देखो बहन चाँद आ गया, अब तुम उसे अर्क दे कर भोजन करलों।

करवा ने अपनी सातों भाभियो को कहा की भाभी चाँद निकल आया है, चलो अर्क दे कर भोजन कर ले। तभी उसकी एक भाभी ने कहा की यह तो आप का चाँद है, हमारा चाँद निकल ने मे अभी थोड़ी देर है।

करवा तो भूख से बहुत व्याकुल थी इसलिए वह चाँद को अर्क दे कर भोजन करने बैठ गई। जब करवा पहला निवाला मुह मे रखती है तब उसे छिक आती है, दूसरा निवाला खाते ही उसमे से बाल निकल आया, जब तीसरा निवाला खा ही रही थी की उसके ससुराल से बुलावा आ गया। की उसका पति बीमार है, और तुरंत ही वापस ससुराल पहुंचे।

बेटी ससुराल जाने वाली है इसलिए माँ ने बक्से से जब कपड़े निकाले तब उस बक्से मे सफ़ेद कपड़े मिले, दूसरी बार जब देखा तो सभी कपड़े काले दिखाय दिये, फिर बेटी ने कहा की माँ तुम रहने दो मे चली जाती हु।

माँ का जी घभरा रहा था, माँ ने कहा की बेटी रास्ते मे जो भी मिले बड़ा-छोटा उसके पैर छूते जाना। जो भी बुढ़्सुहागन होने का आशीर्वाद दे तो उसे वही अपने पल्लू मे गांठ बांध देना, करवा ने ठीक है कह कर अपने ससुराल को जाने लगी।

रास्ते मे उसे जो भी मिला उस के पाव छूती गई। सब ने उसे सुखी रहो, खुश रहो, पियर का सुख देखो ये सब आशीर्वाद दिये, एसे मे वह ससुराल पहुच गई।

ससुराल के आगन मे छोटी ननद खेल रही थी जब उसके पाव छूए तो उसने करवा को आशीर्वाद दिया की सदा सौभाग्यवति रहो, पुत्रवती रहो और बुढ़्सुहागन रहो। यह सुन कर करवा ने अपने पल्लू से गांठ बांध ली।

जब करवा घर मे गई तो देखा की उसका पति मरा है और जमीन पर लेटा है। और उसे ले जाने की तैयारी हो रही है, करवा बहुत रोई और चिल्लाने लगी।

जब उसके पति को ले जाने लगे तो वह बोली की मै इन्हे ले जाने नहीं दूँगी। जब उसकी बात किसिने नहीं मानि तो वह बोली मै भी साथ चलूँगी।

जब वो नहीं मानि तो किसी ने कहा की ले चलो, जब उसके पति को जलाने का समय आया तो वो बोली मै इन्हे जलाने भी नहीं दूँगी।

तब वह खड़े लोगो ने कहा की पहले तो पति को खा गई और अब उसकी मिट्टी भी खराब कर रही है।

लेकिन करवा नहीं मानि, गाव और घर के सभी बड़े लोगो ने कहा की इसे यही रहने दो, और एक ज़ोपड़ी बनवा दो।

करवा वहा अपने पति को लेकर रहने लगी, वह अपने पति की साफ-सफाई करती और उसके पास बैठी रहती। उसकी छोटी ननद दिन मे दो बार खाना दे जाती।

करवा अब हर चोथ का व्रत करती और उसे अर्ध्य देती, ज्योत देती। जब चौथ माता आती तो वह अपने पति के प्राण मांगती, तब माता कहती की जब हमसे बड़े चौथ आएगी तब उनसे अपने पति के प्राण मांगना।

इस प्रकार सभी चौथ आ गई और सभी ने यही कह कर चले गए, आश्विन की चोथ ने कहा की तुजसे कार्तिक की चौथ नाराज है, जब वो आए तो उनसे अपने पति के प्राण मांगना।

कार्तिक की चौथ आई तब करवा ने अपने च्च्होती ननद दे सुहाग का सभी सामान मंगवाया, और उसने करवा चौथ का व्रत रखा। चाँद निकलने पर उसे अर्ध्य दिया ज्योत करी,

जब चौथ माता आए तो माता बोली ‘करवोले-करवोले सात भाइयो की प्यारी बहन करवोले, दिन मे चाँद उगाने वाली करवोले, घनि भूखारन करवोले’।

तब करवा ने उनके पैर पकड़ लिए और बोली माता मेरा सुहाग वापस करदों। तो माता बोली तू तो बड़ी भूखी है तुजे सुहाग से क्या काम, तब करवा बोली नहीं माँ मै आपका पैर तब तक नहीं छोडुंगी जब तक आप मेरे पति को वापस नहीं करते। माता ने उस से सुहाग का सारा सामान मांगा उसने सारा सामान दिया।

चौथ माता ने अपनि आंखो से काजल निकाला, मांग से सिंदूर निकाला और नाखूनो से महदी निकाली और चिटकी उंगली का छीटा दिया, फिर उसका पति जीवित हो गया। और चौथ माता ने उसके ज़ोपड़ी को महल बना दिया।

जब दूसरे दिन उसकी छोटी ननद आई तो देखा की ज़ोपड़ी की जगह महल है और उसका भाई भी जीवित है। और सभी घर वाले उन्हे लेने के लिए गए।

है चौथ माता जैसे साहूकार की बेटी को उसका सुहाग दिया वैसे सबको देना, और सभी पर अपनी कृपा बनाए रखना।  

Nice Days

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