मनुष्य अपनी आत्मा के स्वरूप को कैसे पहचानेगा ?

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आत्मा परिचय :

बाहरी जगत मे हमेशा व्यस्त रहने वाले मनुष्य का अपना खुद का जीवन समाप्त हो जाता है, फिर भी कभी अपनी आत्मा को पहचान ही नहीं पाते। क्योंकि उसका मन बाहरी प्र्वृत्तिओ की उलझनों मे लगा रहता है।

समय की योजना बनानी होगी :

चोबीस घंटे मनुष्य का मन किसी न किसी प्रवृत्ति मे व्यस्त रहता है, इसीलिए हमे समय की योजना बनानी चाहिए।

जिस प्रकार हम घर के सभी काम समय निकाल के करते है, उसी प्रकार हमे इस आत्मा के स्वरूप को पहचानने के लिई भी समय देना होगा।

अपनी रीझ की जिंदगी मे मनुष्य को सुबह के समय या फिर साम के कोई निश्चित समय को निर्धारित करना चाहिए, जिस से हम अपनी अंतर्दृष्टि से आत्मनिरीक्षण करें।

अगर हम एसी समय की योजना बनाते है तभी हमे हमारे जीवन का सही अर्थ पता चलेगा। और ‘मै कोन हु?’ इसका उत्तर मिलेगा।

हमारे मन को घृणा और तिरस्कार से मुक्त बनाकर अनासक्त करने के लिए ध्यान, जप, प्रार्थना, आराधना, उपासना, पूजा कुछ भी कर शकते है।

मनुष्य अपनी आत्मा के स्वरूप को कैसे पहचानेगा ?
मनुष्य अपनी आत्मा के स्वरूप को कैसे पहचानेगा ?

आत्मनिरीक्षण के माध्यमो :

मनुष्य को अपने आत्मनिरीक्षण के लिए क्या करना होगा इसका जवाब खुद से ही प्राप्त कर सकते है, जिस व्यक्ति को उपवास से मन को शांति मिलती तो उसे उपवास करना चाहिए,

जप करने से आध्यात्मिकता का अनुभव होता है तो जप करना चाहिए। अगर भक्ति करने से हमारे मन को खुशी मिलती है तो हमे भक्ति करनी चाहिए।

आत्मनिरीक्षण के यह सभी माध्यमो को भिन्न-भिन्न समय मे भी उपयोग मे ले सकते है। हमारी स्थिति के अनुकूल और मन की आवश्यकता के अनुकूल यह माध्यमो का उपयोग कर सकते है।

मुख्य बात हमारे मन को शुद्ध करना है, हमारे मन मे छुपी नफरत, मोह इन सब का प्रभाव कम करना जरूरी है।

इन सब बुरे प्रभाव को कम करेंगे तभी हमारा मन शांत होगा, और मन शांत होगा तभी हम आत्मा के स्वरूप को पहचानेगे।

आस्था रखनी होगी :

मन को शांत करने के लिए हमे सतत प्रयत्न शील रहना होगा, और इसके लिए आस्था की आवश्यकता जरूरी है।

मन को एकाग्र रखना चाहिए, तभी हमारे मन को उपलब्धि हंसिल होगी। और फिर आत्मश्वरूप की प्राप्ति होगी।

और मन के अंतर्मुखता में सुधार होगा, यह अंतर्मुखता ही मनुष्य को इस तन की आसक्ति से दूर लेके जाएगा और यह अंतरद्र्ष्टि ही आत्मा को परमात्मा से एकरूप करेगा। और समय उसे मै कोन हु? का सही उत्तर देगा। 

आत्मा की जागरूकता :

आत्मा की जागृति हर समय रहनी चाहिए, क्योंकि किसी भी समय लापरवाही की स्थिति आ सकती है। जिस प्रकार कोई चौकीदार जागृत रहता है, उसी प्रकार हमे खुद के जीवन मे जागृत रहना चाहिए।

जो अपने मन के विषय मे लापरवाह होता है, उस के लिए सभी जगे डर का माहोल होता है। जब की शुद्ध और निर्मल लोगो को किसी बात का भय नहीं होता।

जिस व्यक्ति का मन संयम से भरा होगा वह किसी भी बुरी आदतों मे नहीं फसेगा, क्योंकि उसे पता होता है की यह सब व्यर्थ है।

नियम का पालन करने की सतर्कता :

हमारे जीवन मे नियमो का अति महत्व होता है, अपने जीवन को नियमो के अनुसार जीना चाहिए, क्योंकि नियम जीवन को जीने का सही तरीका बताता है।

यह वह नियम है जिसका पालन करने पर दिल को बेहद खुशी मिलती है, जिससे जीवन खुशहाल बना रहता है।

आत्म जागरूकता को बनाए रखने के लिए स्वयं को नियमित करना आवश्यक है।

आत्म ज्ञानी व्यक्ति के जीवन मे आपदाए और संकट तो आते है, लेकिन उन आपदाए और संकटों को समझने, जानने की शक्ति और समज़ होती है।

इस लिए वह व्यक्ति किसी सामान्य व्यक्ति की तरह निराश और हतास नहीं होता है। और उन्ही आपदाओ से वह ज्यादा ज्ञान प्राप्त करता है।

आत्म ज्ञानी व्यक्ति के जीवन मे वह हमेशा शांति और शीतलता का अनुभव करता है।

आत्म ज्ञानी व्यक्ति कोई भी दुष्ट वचन को अपने अंदर तक नहीं जाने देता है, वह किसी भी आपदाओ से बाहर निकल ने की शक्ति रखता है।

उसके साथ उसकी ज़िंदादिली होती है, जो उसे किसी भी परिस्थिति का सामना करने की शक्ति देता है।

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हम भारत देश के निवासी हैं इसलिए हम अपने देश के बारे में जो भी जानकारी जानते हैं, वह सभी जानकारी जैसे की इतिहास, भूगोल, भारत के त्यौहार, आस्था आदि से जुडी जानकारी इस ब्लॉग में हिंदी भाषा में दी गई है।

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