वसंत पंचमी को हम ज्ञान पंचमी भी कहते हैं, और ज्ञान हमेशा तभी प्राप्त होता है जब हमारा मन प्रसन्न होता है। वसंत का अर्थ है खुशी और आनंद। यदि जीवन में सच्चा ज्ञान आता है तो मनुष्य मुक्त हो जाता है और इसीलिए जगतगुरु शंकराचार्यजी ने कहा कि ‘मोक्ष सदा ज्ञान से ही मिलता है’। इस प्रकार यदि ज्ञान की उन्नति के लिए कोई पंचमी है, तो वह ‘वसंत पंचमी’ है।
इस वसंत पंचमी की पौराणिक कथा यह है की, ब्रह्मवैवर्तक पुराण के प्रकृति खंड और श्रीमद् देवी भागवत के नौवें स्कंध में स्पष्ट वर्णन है कि सरस्वती माताजी इस दिन प्रकट हुए थे । जिस दिन माताजी प्रकट हुए वह महा मास का पांचवा दिन था जिसे वसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकार इस दिन को सरस्वती माताजी की पूजा का दिन कहा जाता है लेकिन साथ ही इसे महा मास की गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है और इस गुप्त नवरात्रि की पंचमी वसंत पंचमी है।

हम माँ सरस्वती की पूजा कैसे करते है?
सरस्वती माताजी की पूजा कैसे करें? तो उनकी महिमा में कहा गया है कि पहला बीज नवारण मंत्र में है। ‘ओम्’ इस बीज का सार है। जिनकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वती माताजी हैं।
यदि अधिक मंत्र याद नहीं हैं तो बच्चों को इन बीज मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। खासकर यदि बच्चे इस “ॐ…ॐ…ॐ…” बीज मंत्र का जाप पंचमी के दिन करते हैं तो उनका बौद्धिक विकास होता है। साथ ही सरस्वती माताजी का आसन भी हमें प्रेरणा देता है। उनका आसन पत्थर है। जो व्यक्ति सरस्वती माताजी की पूजा करना चाहता है उसे पत्थर पर बैठने के लिए तैयार रहना पड़ता है। पत्थर का अर्थ है तपस्या।
जीवन में विपरीत परिस्थितियां आने पर भी आपके विचार सकारात्मक होने चाहिए और ये सकारात्मक विचार ही ज्ञान का निर्माण करते हैं। वसंत पंचमी वह पंचमी है जो नकारात्मक विचारों को दूर करती है और सकारात्मक विचारों का निर्माण करती है।
क्या वसंत भगवान का एक रूप है?
अब संगीत की दृष्टि से देखे तो वसंत पंचमी के दिन ‘वसंत राग’ गाना बहुत महत्व का माना गया है। वसंत राग का गायन जीवन में खुशियां लाता है। वहीं गीताजी के दसवें अध्याय में श्री कृष्ण परमात्मा कहते हैं की, ‘ऋतुओं मे वसंत मैं हूं’। इस प्रकार वसंत भी भगवान का ही एक रूप है।
वहीं, विद्वानों का मानना है कि कामदेव के प्रकट होने का दिन भी वसंत पंचमी है। इस दिन कामदेव, वसंत और रति एक साथ प्रकट हुए थे। हमारे यहा चार पुरुषार्थ है, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। जिनमे काम को भी पुरुषार्थ माना गया है। लेकिन विद्वानों ने कहा है कि धर्म को केंद्र में रखकर काम करना चाहिए।
इस प्रकार वसंत पंचमी को ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। जिसमे आज उपनिषद के शब्दो को याद आते है, ‘असतोमा सदगमय, तमसोमा ज्योतिर गमय’। घोर अंधकार से हम सब ज्ञान के प्रकाश की ओर जाए, और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करे और विश्वास और उत्साह के साथ वसंत का स्वागत करे।
क्या वसंत पंचमी देवी सरस्वती की पूजा का एक अच्छा अवसर है?
आदि शक्ति, संपूर्ण चराचर, विश्व में व्याप्त, हाथ में वीणा, पुस्तक और स्फुटिक की एक माला धारण करने वाली, सभी भयों से मुक्त और अभय दान देने वाली, अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाली, कमल आसन पर विराजमान देवी भगवती शारदा को मैं नमन करता हूं, जो परम शुभता से संपन्न हैं।
मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे ब्रह्म ज्ञान, आत्मज्ञान, शास्त्र ज्ञान और कला ज्ञान के दाता हैं। वे माघ (महा) के महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन प्रकट हुए थे। इस दिन को ‘वसंत पंचमी’ के नाम से जाना जाता है।
माँ सरस्वती की उत्पत्ति कैसे हुई?
उपनिषदों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से ब्रह्माजी ने जीवित और मानव योनियों का निर्माण किया, हालांकि वे अपनी रचना से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। उन्हे लगा की इसमे कुछ छुट रहा है, जिनके कारण खामोशी और सन्नाटा छाया रहता है। इसलिए समस्या को हल करने के लिए, उन्होने अपनी हथेली में अपने मंडल से थोड़ा पानी लिया और भगवान विष्णु की स्तुति करने लगी। इससे भगवान विष्णु प्रकट हुए।
ब्रह्माजी ने अपनी समस्या बताई तो उन्होंने आदि शक्ति दुर्गा देवी को प्रकट होने के लिए आह्वान किया, देवी दुर्गा तुरंत प्रकट हुईं, और फिर ब्रह्मा और विष्णु ने उन्हें इस आपदा को दूर करने के लिए कहा। फिर तुरंत ही आदि शक्ति दुर्गमाता के शरीर से एक सफेद प्रकाश प्रकट हुआ जो एक दिव्य देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। उस चतुर्भुज देवी के एक हाथ में वीणा और दूसरे में पुस्तक, तीसरे हाथ में अभय मुद्रा और चौथे हाथ में स्फटिक की माला थी।
उस देवी ने प्रकट होकर वीणा की मधुर ध्वनि की, जिससे संसार के प्राणियों और मनुष्यों में ध्वनि और वाणी प्रकट हुई। उनकी पुस्तक से बुद्धि और ज्ञान का संचार हुआ। उस समय, सभी देवताओं ने शब्द और धुन, तथा रुचि और ताजगी प्रगत करने वाली वाणी की अधिष्ठात्री देवी को ‘सरस्वती’ के रूप में नामित किया।
एक मत के अनुसार सृष्टि के सर्जन के समय ईश्वर की इच्छा से माँ आध्याशक्ति ने खुद को पाँच विभागो मे विभाजित किया। उन पांच भागों की उत्पत्ति राधा, पार्वती, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान कृष्ण के विभिन्न भागों से हुई है। उस समय भगवान कृष्ण के कंठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती पड़ा।
उन्हें वाक, वागेश्वरी, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, ब्राह्मीन , सोमलता, वाग्देवी जैसे कई अन्य नामों से जाना जाने लगा। इस प्रकार जिस दिन वे माँ दुर्गा के माध्यम से प्रकट हुए उस दिन वसंत पंचमी का था।
माँ सरस्वती को ज्ञान की देवी क्यो कहते है?
मां सरस्वती की महिमा और प्रभाव अनंत है। वेदों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ज्ञान की शक्ति हैं। जिनकी कृपा से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेघवी, महर्षि, ब्रह्मर्षि बनता है। वह आत्म ज्ञान को प्राप्त करता है, और ईश्वर का साक्षात्कार करके अमर हो जाता है।
माँ सरस्वती के आशीर्वाद से ज्ञान मे बढ़ोतरी होती है, और सकरत्मक विचारो का विकास होता है। माँ सरस्वती की पूजा करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वसंत पंचमी सबसे अच्छा दिन है।
वसंतऋतु को “ऋतुराज” क्यो कहा जाता है?
वसंत पंचमी से वसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। वसंत ऋतु में धरती हरी हो जाती है और रंग-बिरंगे फूलों से आच्छादित हो जाती है और हर तरफ ताजगी छा जाती है।
सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु सर्वोत्तम है। इसलिए इसे ऋतुराज कहा जाता है। महाकवि कालिदास ने वसंत ऋतु को ‘सर्वप्रिय चारुतरे’ कहा है, जिसका अर्थ है कि यह सभी को प्रिय और अधिक सुंदर है।
वसंत पंचमी के दिन को कामदेव को प्रसन्न करनेका दिन क्यो कहते है?
वसंत पंचमी के दिन कामदेव की भी पूजा की जाती है। वसंत ऋतु ‘मदन उत्सव’ अर्थात कामदेव को प्रसन्न करने का भी उत्सव है। इसी दिन कामदेव यात्रा भी शुरू होती है।
जीवन मे प्रेम और प्रसन्नता से रहने के लिए कामदेव की पूजा की जाती है। प्रेमियों के दिलों में प्यार और काम पैदा करके वसंत उन्हें एकजुट करता है। इस दिन अमर तूर और माधवी लता का विवाह होता है।
वसंत पंचमी मे सर्वश्रेष्ठ और शुभ मुहूर्त कब आता है?
श्रीमद भगवद गीता के विभूतियोग के दसवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने कहा है- ‘मैं ऋतुओं में बसंत हूँ’। इस प्रकार वसंत भगवान कृष्ण की विभूति है। इसलिए वसंत पंचमी मनोकामना पूर्ति की गौरवशाली तिथि है। इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे अच्छा और सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
चूंकि सरस्वती माता के प्रकट होने का दिन है, इसलिए शिक्षा शुरू करने के लिए यह सबसे अच्छा दिन है। इसी प्रकार लक्ष्मी और राधा की कृपा से सुशोभित होने के कारण, भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण और कामदेव के आशीर्वाद से परिपूर्ण होने के कारण, यह दिन विवाह करने के लिए भी सबसे अच्छा दिन है।