तेलंगाना राज्य भारत के आंध्र प्रदेश राज्य से अलग हुआ राज्य है। इन दोनों राज्यों की राजधानी फिलहाल के लिए हैदराबाद ही है, जो की साल 2024 तक दोनों राज्यों की राजधानी रहेगी। और साल 2024 के बाद आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी अमरावती हो जाएगी। तेलंगाना शब्द का मतलब तेलगु भाषिओ की भूमि होता है। यह राज्य भारत देश का 12वां सबसे बड़ा राज्य है।
तेलंगाना राज्य के सामान्य तथ्य:
- स्थापना दिवस : 2 जून 2014
- राजधानी : हैदराबाद
- कुल क्षेत्रफल : 1,14,840 वर्ग किलोमीटर
- कुल जिले : 33
- बड़ा शहर : हैदराबाद
- प्रथम मुख्य मंत्री : के. चंद्रशेखर राव
- राजकीय भाषा : तेलगु, उर्दू, फारसी
- राजकीय पक्षी : नीलकंठ
- राजकीय पशु : जिंका हिरण
- राजकीय पेड़ : जम्मि चेट्टु
- राजकीय फूल : तंगिदी पुव्वु (सेना आर्किलता)
- राजकीय खेल : कबड्डी
- राज्य गीत : “जया जया वह तेलंगाना”
- तमिलनाडू राज्य की सीमा : कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओड़ीसा, आंध्र प्रदेश
- प्रमुख नदी : गोदावरि, कृष्णा, भीमा, तुंगभद्रा, वर्धा
- जनसंख्या : 35,193,978
- साक्षरता दर : 66.46%
- प्रमुख कृषि उद्योग : चावल, मक्का, रागी
- पर्यटक स्थल : वारंगल (मंदिर, किल्ले, जंगल, पहाड़), हैदराबाद (चार मीनार, फलकनुमा पेलेस, पुरानी हवेली, शाही मस्जिद, जगन्नाथ मंदिर), मेदक शहर, निजामाबाद, नालगोंडा, भद्राचलम, नागार्जुनसागर, पपीकोंडालु आदि।
- मुख्य नृत्य : पेरिनी शिवतांडवम
तेलंगाना राज्य का नाम कैसे पड़ा?
तेलंगाना राज्य मे मुख्य रूप से दो नदियां बहती है। उसमे से एक नदी का नाम है गोदावरी, जो उत्तर दिशा की ओर जाती है। और दूसरी नदी का नाम है कृष्णा। उन दोनों नदियों के बीच मे तीन प्रसिद्ध पहाड़ियाँ है, कालेश्वरम, श्री सेलम और द्रक्षद्रम। इन तीन पहाड़ियों के ऊपर भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है। जहां पर शिवलिंग स्थापित किए हुए है, शिवलिंग बनने के कारण इस क्षेत्र को स्थानिक लोग इसे त्रिलिंगा कहा करते थे।
यहाँ पर भगवान शिव के तीन मुख्य मंदिर बने हुए थे। जिसे त्रिलिंगा प्रदेश कहा जाता था, लेकिन त्रिलिंगा शब्द धीरे-धीरे तेलुंगु बन गया और तेलुंगु से तेलंगाना की संज्ञा दी जाती है।
तेलंगाना राज्य का इतिहास:
सन 1800 मे तीन तेलुगू भाषी क्षेत्र हुआ करते थे। जिसे तेलंगाना, रायलसीमा और तटीय आंध्रा कहा जाता था। उस समय मे वहाँ पर मिर निज़ाम अली खान का शासन हुआ करता था। निज़ाम अली खान तेलंगाना शब्द का उपयोग मराठी भाषी क्षेत्रो को तेलुगू भाषी क्षेत्रो से अलग करने के लिए किया करता था। क्यों की निज़ाम को एक क्षेत्र अपने मिर राजवंश घराने के शासको से मिला था।
साल 1800 मे ब्रिटिश शासन का समय चल रहा था। तो उस दौरान निज़ाम ने रायलसीमा और तटीय आंध्रा को ब्रिटिस सरकार के हाथो मे सोप दिया। और इसी के साथ रायलसीमा और तटीय आंध्रा ब्रिटिस सरकार के मद्रास प्रेसीडेंसी का भाग बन गया।
अब मिर निज़ाम के पास सिर्फ ये तेलंगाना वाला क्षेत्र और बाकी कुछ हिस्सा ही बचा हुआ था। जो की निज़ाम की हैदराबाद स्टेट के अंदर आता था। और साल 1800 से लेकर साल 1946 तक मिर राजवंश के जीतने भी शासको ने हैदराबाद स्टेट पर राज किया उन्हे निज़ाम ही बुलाया जाता था।
अब समजने वाली बात ये भी है की आज का तेलंगाना और साल 1800 के हैदराबाद मे काफी अंतर है। क्योंकि उस समय हैदराबाद राज्य मे महाराष्ट्र और कर्नाटक का कुछ हिस्सा भी सामील था।
जब साल 1946 मे भारत को ब्रिटीश शासन से आज़ादी मिली तो उस समय हैदराबाद राज्य के सहित देश के सभी रियासतो को भारत मे मिलाया जाना था। भारत के आज़ादी के समय हैदराबाद राज्य के निज़ाम मिर उस्मान अली खान थे। उन्होने हैदराबाद को भारत मे विलय करने से मना कर दिया। और आज़ादी के बाद सरकार के आधीन जा कर हैदराबाद राज्य को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया।
क्योंकि ये निज़ाम हैदराबाद को स्वतंत्र भारत का हिस्सा न बनाते हुए, उसे एक शाही राज्य बनाना चाहते थे। लेकिन उस समय निज़ाम की किस्मत कुछ ज्यादा ही खराब थी, क्योंकि देश के 582 रियासतों को देश मे विलय करके भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे लोह पुरुष सरदार वल्लभभाइ की थी।
सरदार पटेल ने निज़ाम को चेतावनी देते हुए सैन्य कारवाई के आदेश जारी कर दिये। और 17 सितंबर 1948 को सैन्य की कारवाई को चलते निज़ाम ने भारत के सामने अपनी हार मानली। जिसे ऑपरेशन पोलो के नाम से जाना जाता है।
आज़ादी के बाद धीरे-धीरे एक अलग तेलुगू राज्य बनाने की मांग को लेकर आवाज़ उठने लगी थी। ये आवाज़े सीधा मद्रास की ओर से आ रही थी।
सन 1952 से देश मे चुनाव की प्रक्रिया होने लगी थी। और इसी समय राज्य को लेकर भी चुनाव हुए थे। कॉंग्रेस ने सभी राज्यो मे अपना झण्डा लहराया था, सिवाय मद्रास स्टेट को छोड़ कर, क्योकि वहाँ के लोग एक अलग राज्य चाहते थे।
उस समय भाषा के आधार पर राज्य को बांटने की इच्छा किसी को भी नहीं थी। क्योंकि उससे पहले धर्म के आधार पर राज्य को बाटा गया था, जिससे कई सारे लोगो को नुकसान हुआ था।
सन 1953 मे स्टेट ओर्गेनाइज़ेशन कमिशन ने एक कमिटी ने आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण किया। आंध्र प्रदेश भाषा के आधार पर बनने वाला पहला भारत का राज्य था, जिसकी राजधानी करनूल को बनाया गया था।
आंध्र प्रदेश 14 जिलो और बाकी कुछ क्षेत्र को मिला कर बनाया था। सन 1956 मे कुछ पोलोटिकल प्रेसर के कारण तेलंगाना को आंध्र प्रदेश के साथ जोड़ कर एक नए आंध्र प्रदेश का निर्माण किया गया।
तेलंगाना राज्य कैसे बना?
सन 1969 मे ‘जय तेलंगाना’ के साथ आंदोलन की शुरुआत हुई। ये आंदोलन बहुत ही हिंसात्मक रही थी, कई लोगो को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। लेकिन तेलंगाना की मांग पूरी नहीं की जा सकी।
सन 1972 मे फिर से तटीय आंध्रा की तरफ से भी ‘जय आंध्रा’ के आंदोलन की आवाज़ उठी।
सन 1973 मे इस आंदोलन को रोकने के लिए ‘सिक्स पॉइंट’ फॉर्मूला का उपयोग किया गया। जिसकी वजह से एक शांतिपूर्ण समझोता किया गया।
सन 2001 मे के चन्द्रशेखर राव ने तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन किया। चन्द्र शेखर राव की मांग पूरी न होने पर सन 2009 मे वे भूख हड़ताल पर चले गए। और उनकी हालत बिगड़ ने लगी थी। और दूसरी तरफ विरोध भी तेजी से बढ़ने लगे थे। सरकार को लगा की अगर चन्द्र शेखर को कुछ हो गया तो हालत काबू मे नहीं आएगी। यह सोच कर सरकार ने 2009 मे तेलंगाना की मांग को स्वीकार कर लेती है।
18 फरवरी 2013 मे लोक सभा और 20 फरवरी 2013 मे राज्य सभा मे तेलंगाना बिल को मंजूरी दे दी गयी। जिसे ‘तेलंगाना रिओर्गेनाजेसन बिल’ कहा जाता है।
फिर 1 मार्च 2014 को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तेलंगाना राज्य को मंजूरी देते है। और 2 जून 2014 को एक नए तेलंगाना राज्य का निर्माण किया जाता है। इस घोषणा के अनुसार सन 2024 तक हैदराबाद ही तेलंगाना और आंध्रा प्रदेश की राजधानी रहेगी। जिसके बाद आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती बनाया जाएगा।
तेलंगाना को आंध्रा प्रदेश से अलग क्यों किया गया?
तेलंगाना राज्य को आंध्रा प्रदेश से अलग करने के लिए कई सारे कारण मिल जाते है। जो नीचे बताए गए है। –
राजनीति : राजनीति मे तेलंगाना के साथ पक्ष-पात देखा गया था। आंध्र प्रदेश की राजनीति तेलंगाना मे काफी प्रभावि थी। सभी मामलो मे ज़्यादातर सहयोग आंध्र प्रदेश को ही दिया जाता था। कई मामले एसे थे जिसमे आंध्रा के नेता तेलंगाना के पक्ष मे नहीं होते थे।
शिक्षा और रोजगार : दोनों राज्यो के बीच पहले से ही असमानता देखी गयी थी। मद्रास ब्रिटिश शासन का हिस्सा हुआ करता था, इसी कारण से उस के पास शिक्षा, रेल सर्विस और आर्मी थी। आंध्रा प्रदेश तेलंगाना के मुकाबले काफी आगे था। क्योंकि ये ब्रिटिस सरकार की मद्रास प्रेसीडेंसी का एक भाग था, तो तेलंगाना को लगता था की ज़्यादातर नोकरी और रोजगार तो आंध्रा के पास चली जाएगी।
साम्राज्यवाद : तेलंगाना के लोगो की यह सिकयाते थी की आंध्रा प्रदेश अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए तेलंगाना के शंसाधनों का उपयोग कर रहा है। जिस के चलते तेलंगाना मे विकास और निर्माण आंध्रा के मुकाबले कम हुआ है।
कुदरती शंसाधन : कृष्णा और गोदावरि नदी का पानी भी ठीक तरह से नहीं बाटा जा रहा था।
तेलंगाना राज्य का भूगोल:
तेलंगाना राज्य के दक्षिण एवं पूर्व मे आंध्र प्रदेश, उत्तर और उत्तर पश्चिम मे महाराष्ट्र, उत्तर पूर्व मे छत्तीसगढ़ और पश्चिम मे कर्नाटक स्थित है।
इस राज्य मे मुख्य रूप से गरम और शुष्क जलवायु है। तेलंगाना मे उत्तर से दक्षिण की दूरी 770 किलोमीटर है, और पश्चिम से पूर्व की दूरी 515 किलोमीटर पायी जाती है।
तेलंगाना राज्य दक्षिण के पठार मे गोदावरी और कृष्णा नदी के बीच मे स्थित है। लेकिन यहाँ की ज्यादातर भूमि शुष्क ही है। गोदावरि नदियाँ की सहायक नदियों मे मंजीरा, मनेरो और प्राण नदी है और कृष्णा नदी की सहायक नदी मे तुंगबद्र, मुसी, दींडी, भीमा और मुनेरों है।
तेलंगाना मे कई प्रकार की मिट्टी मिल जाती है, जैसे की लाल दोमट रेत, लैटेरिटिक मिट्टी, लाल रेतीली दोमट(चालका), जलोढ़ मिट्टी, नमक प्रभावित मिट्टी, उथली से मध्यम काली मिट्टी एवं कपास मिट्टी आदि मिट्टी पाई जाती है। इन मिट्टिओ मे गन्ना, केला, आम, संतरा, नारियल, धान और फूलो की खेती की जा सकती है, इन के अलावा इन मिट्टी मे सब्जियाँ और विभिन्न प्रकार के फलों की भी फासले उगाई जाती है।
तेलंगाना राज्य की नदियाँ:
गोदावरी नदी :
गोदावरि नदी दूसरी सबसे लंबी नदी है। इस नदी की लंबाई 1465 किलोमीटर है। और इसे दक्षिण की गंगा और एकरमेन डायग्राम के रूप मे भी जाना जाता है। इसलिए इसकी बहने की दिशा पश्चिम से दक्षिण की ओर है। यह नदी महाराष्ट्र के नाशिक जिले मे विजय रूप से निकलती है, और आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरि जिले मे नरसापुरम मे समाप्त होती है।
मंजीरा नदी :
इस नदी की लंबाई 644 किलोमीटर है। यह नदी बलागा मे अहमद नगर जिले की पहाड़ियों की श्रेणी से उत्पन्न होती है और यह महाराष्ट्र के लातूर जिले से बहती कर्नाटक से होकर अंत मे तेलंगाना मे प्रवेश कर के कुंडाकुर्ती मे गोदावरी नदी से जुड़ जाती है।
कृष्ण नदी :
यह नदी दूसरी सबसे महत्वपूर्ण नदी है। यह नदी दक्षिण भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी है। इसकी लंबाई 1400 किलोमीटर है। यह नदी महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट से प्रवाहित होती है। महाराष्ट्र मे यह नदी 306 किलोमीटर बहती है और कर्नाटक मे 483 किलोमीटर बहती है, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश मे 612 किलोमीटर प्रवाहित होती है। और अंत मे आंध्र प्रदेश के पूर्व तट से हो कर बंगाल की खाड़ी मे मिल जाती है।
भीमा नदी :
यह नदी 861 किलोमीटर लंबी है। यह महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना राज्य से हो कर प्रवाहित होती है। और अंत मे रायचू मे कृष्ण नदी से मिल जाती है। इस नदी का उद्देश्य सिंचाई है।
तुंगभद्रा नदी :
इस नदी की लंबाई 531 किलोमीटर है। यह नदी कर्नाटक से निकल कर संगमेश्वर, कर्नूलु और महबूबनगर जिले मे कृष्ण नदी से मिल जाती है।